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________________ ६२] [ऋषिदत्ताचरित्रसंग्रहः ॥ कंद-फल-मूलभोई, नाणाविहसावयाण परिभीया । सा अच्छिउं पयत्ता, पंचमवरिसस्स तत्थ गया ॥१०२॥ पवणाहयपत्ताण वि सा भयमाणा तहिं गमइ कालं । अण्णम्मि दिणे चिंता संजाया तीए बालाए ॥१०३।। मं सव(व्व)इत्थियाओ पत्थयणिज्जाउ हुँति लोयाणं । ता कह अखंडियं मे, सीलं परिरक्खियव्वं ति ॥१०४॥ जेण- "शीलं नाम नृणां कुलोन्नतिकरं, शीलं परं भूषणं, शीलं ह्यप्रतिपातिवित्तमनघं, शीलं सुगत्यावहम् । शीलं दुर्गतिनाशनं सुविमलं, शीलं यशस्कारकं । 10 शीलं निर्वृतिहेतुरेव हि परं, शीलं तु कला[ ल्पद्रुमः" ॥१०५॥ शा.वि. ॥ जावेवं सा चिंतइ संभरिया ताव आसि जा पिउणा । ओसहि अइसयजुत्ता, पदंसिया जीवमाणेणं ॥१०६।। भणियं च तेण तइया, पुत्ता इमा ओसही जइ उरम्मि । वाम्मि इत्थियाए फालेउं कह वि खिप्पेइ ॥१०७।। तो सा पणट्ठलिंगा, हवेइ पुरिसं न एत्थ संदेहो । उद्धरियाए तीए पुणो वि सा इत्थिया होइ ॥१०८।। दाहिणउरम्मि पुरिसो, एसा जइ खिवइ फालिऊण उरं । तो सो वि होइ इत्थी, उद्धरियाए पुणो पुरिसो ॥१०९।। गहिऊण ओसही सा, तीए वामम्मि जा उरे खित्ता । तो सा पणट्ठलिंगा, पुरिसत्तं चेव संपत्ता ॥११०॥ दट्ठण पुरिसरूवं अईवपरितोसमागया बाला । वक्कलनियंसणा सा तावसकुमरत्तणं पत्ता ॥१११॥ दीहरजडाकलावा, तावसवेसत्तणेण सा बाला । हरिणि व्व जूहभट्ठा परिवसिउं तत्थ आढत्ता ॥११२।। 25 [ ऋषिदत्ताविरहे कुमरस्यावस्थावर्णनम् ] एवं ताव एवं इओ उ रहमद्दणम्मि नयरम्मि । कुमरस्स जाआ तत्थ संपत्ता सा अहं भणिमो ॥११३॥ 20 D:\amarata.pm5\3rd proof
SR No.009695
Book TitleRushidatta Charitra Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2011
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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