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[धर्मसंग्रहः भयवं ! जे णं गणी [म.नि.१/१३] ७४४ | भूमिपेहणजलछाणणाइभयवं ! तित्थं पवत्तेहि
[पञ्चा.४/११] २२२ _ [आ.नि./२१५] २६१ | भूमी घरा य तरुगण, भयवं ! बीअपमुहासु [ ] ४२० [द.वै.नि.२५६/सं.प्र.श्रा.५८] १२१ भरतैरवतविदेहाः [ तत्त्वा.३/१६] २७९ | भूयो भूयो उपदेश इति [ध.बि.६६] ३२ भवगिहमज्झंमि [ ]
३५६ | भृतका अपि कर्त्तव्या, [षोड.६/१०] ४४३ भवणा परमा जंभय [वि.स./१२] २५४ | भो भो देवाणुप्पिआ ? [ ] २३५ भवोद्वेगश्च सहजो, [यो.दृ./२७] २३ भोअणओ सावगो [प्र.आ.चू.] १२५ भाणस्स कप्पकरणे,
भोअणकाले अमुगं, [प्र.सा./२१५] ३४१ [बृ.क.भा./१७०५] ५६० भोगविणटुं दव्वं, [चे.वं.म./८९] २२७ भाणस्स पास बेट्ठो, [प.व./२६९] ५१२ | भोगो तंबोलाई, [सं.प्र./८३] २९२ भामिज्जंतो सुर- [ ] २४७ भोजनानन्तरं [नी.शा.]
३६७ भावगयाइं सत्तरस, [ध.र./५६] ८६ | भ्रान्तिमात्रमसदविद्या [ ]
२६६ भावनातो रागादिक्षय इति
[म] 1 [ध.बि./१३१] ४९ | मंगलदीवा तहा, [पञ्चा.८/२३] ४४९ भावयितव्यमनित्यत्व- [प्र.र./१४९] ४९ | मंगलपडिसरणाई, [पञ्चा. ८/२४] ४४९ भावशुद्धेनिमित्तत्वात् [स्नानाष्टके/४] २२४ | मंजिट्रलक्खकोसुंभभावोवयारमेसि, [हि.मा./३०४] ३५९
__ [श्रा.वि./१२वृ.] ४२२ भासा असच्चमोसा,
मंसं इमं मुत्तपुरीस- [श्रा.दि./३१४] ४१७ [आ.नि./११०८] २७७ | मंसकुरो व्व समाण- [पञ्च./६४५] ६६१ भासा चउव्विह त्ति अ, [भा.र./१७] ६६७ | मइभेएण जमाली, [व्य.भा./२७१४] ७१ भिंगाइलोमहत्थय- [सं.प्र.दे./१७५] २२८ मउडं न अवणेइ, [आ.सू.चू.] १५२ भिक्खु अ गणाओ [बृ.क.४/२३] ७४५ मगदंतिअपुप्फाई, [बृ.क.भा./९७९] १३८ भिक्खू अ बहुस्सुए [व्य.३/२३-२९] ७४३ मग्गो आगमणीई, [ध.र./८०] ४८६ भिक्खू अन्नयरं [व्य.सू.३४/३९] ४३६ मच्छुव्वत्तं मणसा वि, भिक्खू इच्छिज्जा [व्य.३/१] ७३५
[आ.नि.१२२२] ३०५ भिन्न एव देहान्न [ध.बिं/११५] ४६ | मज्जं विसयकसाया, [उ.नि./१८०] १४५ भिन्नं गणणाजुत्तं,
मज्जण निसिज्ज अक्खे, [बृ.क.भा./३९८७] ५८६
[आ.नि./७०३] ७३४ भुंजइ अणंतरेणं, [प.च.] ३४० | मज्जण निसिज्ज अक्खे, भुक्त्वोपविशस्तुन्दं, [नी.शा.] ३६७
[आ.नि./७०३] ६५३ भूजलजलणानिल- [सं.प्र.श्रा./८] ११३ मज्जारमूसगाइ अ [ओ.नि./२२७] ६३८ भूदग्गिवाउणंता, [वि.स./१०] २५३ | मज्जे महंमि मंसंमि, [सं.प्र.श्रा./७६] १२६ भूमिक्खयसाभाविअ - [पञ्च./६४६] ६६२ | मज्झण्हे पुणरवि [ ]
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