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संस्कृतटीका-भाषाटीकासमेतः। (७१) वृष्टिर्भवेत् । अथवा लग्ने यदि शुभग्रहत्रयं भवति तदा महती वृष्टिर्भवति । अथवा अयमेवोत्तरार्धार्थः वृष्टिप्रश्ने वक्तव्य इति भावः ॥ ९७ ॥ । अर्थ-एकीसवें द्वारमें प्रथम विवाहादि समयोंमें वृष्टिज्ञान लिखते हैंयदि विवाहादि लग्नसे दशम स्थानमें दो शुभग्रह हों तो विवाहादि कार्य समयमें वर्षा हो और यदि लग्नमें तीन शुभग्रह हों तो बहुर वर्षा होवे । इसी प्रकार वर्षा होगी या नहीं ?-इस प्रश्नमें भी विवारना अर्थात् प्रश्नलग्नसे दशमस्थानमें दो शुभग्रह हों तो साधारण और तीन शुभग्रह लग्नमें हों तो महान् वर्षा होगी ऐस कहे ॥ १७ ॥ मूर्तावुच्चः खेटो जामित्रे दधाति येन दृशम् ॥ स नो हंति कलवं क्रूराश्चान्ये तु निनंति ॥ ९८॥ __ सं० टी०-अत्रैव च कलत्रजीवनमरणादिज्ञानमाह-मूर्ती लग्ने यदि कश्चिदुच्चग्रहो भवति विवाहसमये तदा कलत्रं नों हात स्त्रीविनाशं न कुरुते, च पुनः अन्ये क्रूरग्रहाः सप्तमस्थाने वर्तमानाः कलत्रं विनाशयंतीति भावः ॥ ९८॥ इति विवाहादिसम्बन्धिविचारद्वारमेकविंशम् ॥२१॥
अर्थ-अब यहीं स्त्रीका जीवन और मरणका ज्ञान लिखते हैंसप्तमस्थानमें पापग्रहके होनेसे स्त्रीकी मृत्यु होती है, वहाँ विशेष लिखते
"Aho Shrut Gyanam"