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(७२) भुवनदीपकः । हैं कि, अपने उच्चराशिमें बैठा हुआ ग्रह यदि लग्नमें हो तो जिस लिये सप्तमस्थानको पूर्णदृष्टि से देखता है, इसी लिये स्त्रीका मरण नहीं करता है और अन्य पापग्रह अर्थात् उच्चादिसे भिन्न स्थानस्थित ग्रह पदि लग्नमें हों तो स्त्रीकी मृत्यु करते हैं ॥ ९८ ॥
इति विवाहादिसम्बन्धिविचारद्वारम् ॥ २१ ॥ क्रूरः खेटोलग्ने विवादपृच्छासु जयति विवदंतम्॥ सर्वावस्था परं नीचास्ते जयति न द्विपितम् ९९ __ सं०टी०-अथ विवादविचारद्वारमाह-अहं वादे अमुकं वादिनं जेष्यामि न वेति प्रश्ने यदि काग्रहो मूर्ती तदा वक्तव्यं जयो भवति । तथा स एव मूर्तिस्थः क्रूरग्रहो नीचो वाऽस्तं गतो वा भवति तदा तस्य जयो न भवति इति वाच्यम् ॥ ९९॥
अर्थ--अब बाईसवें द्वारमें जय पराजय लिखते हैं-यदि विवाद सम्बन्धी अर्थात् अमुक जनसे विवाद हो रहा है उसमें जीतूंगा या हारूँगा? ऐसे प्रश्नमें पापग्रह लग्नमें बैठा हो तो वादीको जीते यदि और वही पापग्रह नीचराशिमें, सूर्यके सान्निध्यसे अस्त, या शत्रुग्रहके राशिमें हो तो वादीको नहीं जीते अर्थात् पराजय पावे ॥ ९९ ।। लग्ने छूने च यदा क्रूरः खेटो विवादिनोर्न तदा ॥ कलहनिवृत्तिः कालेन जयति बलवान्गतबलं तु ॥
"Aho Shrut Gyanam"