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________________ (७०) भुवनदीपकः । भावांतगतः खेटः परभावफलं ददाति पृच्छासु ॥ अंतघटीर्यावदसावासीनफलं विवाहादौ ॥ ९६॥ सं० टी०-अथ भावान्तगतग्रहफलद्वारमाह-पृच्छालग्ने यो ग्रहो यस्मिन् अंशके वर्तते स ग्रहस्तत्र स्थितोऽपि आयियासुराशिफलं ददाति सर्वत्र पृच्छासु, परं विवाहादी कार्ये प्रांतघटीवित् यत्र नवांशके भवति तस्यैव राशिफलं ददाति नान्यराशेरिति भावः ॥९६॥ इति भावांतग्रहफलद्वारं विंशम् ॥२०॥ अर्थ-अब बीसवें द्वारमें भावके अन्तमें स्थित ग्रहोंके फलदातृत्व लिखते हैं-समस्त प्रश्नोंमें भावके अन्तमें स्थित जो ग्रह सो अगले भावका फल देता है और विवाहादि कार्योंमें भावके अन्तघडी अर्थात् समाप्ति पर्यन्त जिस भावमें ग्रह है, उसी भावका फल देता है ॥ ९६॥ इति भावान्तग्रहद्वारम् ॥ २० ॥ अंबर(१०)गतं शुभग्रहयुग्मं वृष्टिर्भवेद्विवाहादौ ॥ लग्ने शुभत्रयस्य तु योगे महती भवेवृष्टिः॥९७॥ सं० टी०-अथ विवाहसम्बन्धिविचारद्वारमाह-अंबरगतमिति । विवाहलग्नसमये यचंबरगतं. शुभग्रहयुग्मं भवति यदि दशमस्थाने द्वौ शुभग्रही स्यातामित्यर्थः । तदा विवाहसमये "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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