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संस्कृतटीका - भाषाटीकासमेतः ।
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रिपुक्षेत्रस्थितौ द्वौ तु लग्नाद्यदि शुभग्रहौ ॥ क्रूरश्वकस्तत्र जाता भवेत्स्त्री विषकन्यका ॥ ९५ ॥
सं० टी० - अथ : विषकन्यानिर्णयद्वारमाह - पृच्छालग्नाजन्मलग्नाद्वा षष्ठे स्थाने द्वौ सौम्यग्रहौ स्यातां यदि एकश्च क्रूरो भवति तस्मिन् तत्र काले जाता स्त्री विषकन्यकेयमिति वाच्या । " लग्ने सौरी रविः प्रान्ते धर्मस्थे परिणीसुते । अत्र योगे यदा जाता भवेत्त्री विषकन्या ॥ क्रूरद्वयमध्यगते लग्ने चन्द्रे च कन्यका जाता । हरति स्वं पितृपक्षं स्वमपि कुलं घातयत्यखिलम् " || ९५ ॥ इति विपकन्या निर्णयद्वारमेकोनविंशम् १९
अर्थ - अब उन्नीसवें द्वारमें विषकन्यायोग लिखते हैं - प्रश्न लग्नसे या जन्मलग्नसे छटे स्थानमें दो शुभग्रह और एक पापग्रह स्थित हों तो इस योग में जन्मी हुई स्त्री विषकन्या होती है. अब यहाँ ग्रन्थांतरसे लिखे हुए टीकाकार के विषकन्यायोगोंके श्लोकोंका अर्थ लिखता हूँ:यदि लग्न में शनि, बारहवें रवि और नौवें स्थान में मंगल हों तो इस योग में जन्मी हुई स्त्री विषकन्या होती है। तथा दो पापग्रहों के बीचमें लग्न और चन्द्रमा हों तो विषकन्या होती है, विषकन्यायोगमें जन्मी स्त्री अपने पिताके कुल और अपने अर्थात् स्वामीके कुलका नाश करती है ॥ ९५ ॥
इति विषकन्या निर्णयद्वारम् ॥ १९ ॥
"Aho Shrut Gyanam"