________________
संस्कृत टीका-भाषाटीकासमेतः। (६३) एतदन्यथात्वेन असत्या इति भावः ॥ ८६ ॥ इति लग्नाधिपस्थितिफल द्वारं त्रयोदशम् ॥ १३ ॥ ___ अर्थ-किसीसे सुनीहुई यह बात सत्य है वा मिथ्या इस प्रश्नमें चन्द्रमा वा लग्नास्वामी अथवा शुभग्रह केन्द्र ( प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम ) में स्थित हों तो वह किम्बदन्ती (किसीसे सुना हुआ वाक्य) सत्य है, ऐसा कहना और यदि विपरीत हो अर्थात् लग्नस्वामीके शत्रुग्रह या पापग्रह केन्द्रमें हों तो मिथ्या जाननी ॥ ८६ ।।
__ इति लग्नाधिपतिस्थितिफलद्वारम् ॥ १३ ॥
क्षेमप्रश्ने च गर्भस्य गर्भ गर्भाधिपो भवेत् ॥ न पश्यति ग्रहःचरस्तव चास्ति च्युतिस्तदा ८७॥ __सं०टी०-अथ गर्भमाक्षेमदारमाह-गर्भस्य क्षेमप्रश्ने कृते सति गर्भ पञ्चमस्थानं तत् स्वामी न पश्यति क्रूरग्रहः पंचम पश्यति अथवा तत्रैव भवति तदा वाच्या अस्य गर्भस्य च्युतिः पतनं भविष्यति, विपर्यये विपर्ययः ॥ ८७ ॥ इति गर्भसमाक्षेमद्वारं चतुर्दशम् ॥ १४ ॥
अर्थ-अब चौदहवें द्वारमें गर्भका क्षेमप्रश्न लिखते हैं-यदि गर्भ क्षेमप्रश्नमें गर्माविष अर्थात् पञ्चमभाव का स्वामी पञ्चमभावको नहीं देखता हो और पापग्रह पंचम भावमें स्थित हो या पंचम भावको
"Aho Shrut Gyanam"