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________________ ( ६२ ) भुवनदीपकः । लग्नेश बारहवें भाव में हो तो अनवरत खर्च करता है, परन्तु यहाँ विशेष यह है कि, यदि पापग्रह लग्नेश होकर बारहवें हो तो कुत्सित कर्म अर्थात् जूआ आदिमें व्यय होता है और यदि शुभग्रह लग्नेश होकर बारहवें हो तो सन्मार्गसे खर्च करता है ॥ ८४ ॥ लग्नस्थं चन्द्रजं चन्द्रः क्रूरो वा यदि पश्यति ॥ धनलाभो भवेदाशु किंत्वनर्थोऽपि दृश्यते ॥ ८५ ॥ सं०टी० - विशेषमाह - लग्नस्थं चन्द्रजमिति | लग्ने विद्यमानं बुधं यदि चन्द्रमा अन्यो वा क्रूरः कश्चित्पश्यति तदा धनस्य लाभो भवति आशु शीघ्रं परं पश्चादनथों भवतीति वाच्यम् ८५ अर्थ - अब विशेष लिखते हैं- यदि लग्नमें स्थित बुवको चन्द्रमा अथवा कोई पापग्रह देखता हो तो शीघ्र धनका लाभ हो, किंतु लाभके पीछे कुछ अनर्थ भी देखाजाय ॥ ८५ ॥ चंद्रा लग्नपतिर्वाऽपि यदि केन्द्रे शुभाः स्थिताः ॥ किंवदंती तदा सत्या स्यादसत्या विपर्यये ॥ ८६॥ सं०टी० - किंच चन्द्र इति । लग्ने वर्तमानश्चन्द्रो लग्नपतिर्वा यदि केन्द्रे प्रथम चतुर्थदश सप्तमरूपस्थानविशेषे स्थितो भवति प्रश्नकाले तदा लोके श्रूयमाणा किंवदंती सत्या वाच्या । "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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