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________________ भुवनदीपकः। देखताहो तो गर्भपात होजायगा ऐसा कहना और इससे विपरीत या अन्य प्रकारकी ग्रहस्थिति हो तो गर्भकी पुष्टयादि कहना ॥ ८७ ॥ इति गर्भक्षेमद्वारम् ॥ १४ ॥ अविनष्टो यदा गांधिपो गर्भ निरीक्षते ॥ तदैव प्रसवोगुा नान्यथेति विनिश्चयः ॥ ८८॥ सं० टी०-अथ गुर्विणीप्रसवविचारद्वारम् । गर्भाधिपः पंचमस्थानस्वामी क्रूराक्रमणाद्यभावेन अविनष्टः गर्भं पंचमस्थानं यदि पश्यति तदा तस्मिन्नेव समये प्रत्यासनकाले तथा प्रसवो वाच्यः अन्यथा अन्यतरत्वमिति भावः ॥ ८८॥ इति गुर्विण्या: प्रसवद्वारं पञ्चदशम् ॥ १५ ॥ अर्थ-अब पन्द्रहवें द्वारमें गर्मिगीका प्रसव विचार लिखते हैंयदि गर्भाधिप ( पञ्चमभावका स्वामी ) अविनष्ट अर्थात् ग्यारहवें द्वारमें कहे हुये विनष्टग्रहोंके लक्षणसे रहित हो और पञ्चम भावको देखता हो तो प्रसव कहना और इससे अन्यथा हो अर्थात् विनष्टादि हो तो गर्भका भी नष्टादि कहना ॥ ८८ ॥ इति गुर्विणीप्रसवद्वारम् ॥ १५ ॥ पृच्छालग्ने च चत्वारि ग्रहयुग्मानि संति चेत् ॥ यत्र तत्रैव युग्मस्य प्रसवं ब्रुवते बुधाः॥८९॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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