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________________ संस्कृतटीका-भाषाटीकासमेतः। (४९) सं०टी०-अथ लग्नपत्याददृष्टिविशषमाह-सौम्यः शुभग्रहों लग्नं पश्यति स लग्नाधिपो न पश्याति तदा पादयोगं कथयति । कोऽर्थः-पञ्च ५ विंशोपका कार्यसिद्धिर्भवति । तथा शुभग्रहो लग्नं न पश्याति, लग्नाधिपः पश्यति तदाऽधोगम् । कोऽर्थः दशविंशोपका कार्यसिद्धिः ॥ ६३ ॥ अर्थ-दृष्टिपरसे फल कहते हैं-यादे शुभग्रह लग्नको देखता हो और लग्नका स्वामी लग्नको न देखे तो पादयोग अर्थात् चतुर्थांश ५ विंशोपक कार्यसिद्धि जाननी तथा लग्नस्वामी लग्नको देखता हो और शुभग्रह नहीं देखे तो अर्धयोग अर्थात् आधा १० विंशोपक कायसिद्धि जाननी ॥ ६३ ॥ एकःशुभग्रहो यदि पश्यतिलग्नाधिपो विलोकयति। पादोनयोगमाहुस्तदा बुधाःकार्यसंसिद्धये ॥ ६॥ सं० टी०-लग्नपतिर्लग्नं पश्यति अपरोऽपि यदि सौम्यग्रहः कोऽपि पश्यति तदा पादोनयोगमाहुः कथयति बुधाः। कार्यसिद्धिविषयकोऽभिप्रायःपञ्चदविंशोपकाकार्यसिद्धिरिति ॥६४॥ अर्थ-यदि कोई एक शुभग्रह और लग्नका स्वामी ये दोनों लमको देखें तो कार्यकी सिद्धिके लिये चतुर्थाशोन योग पण्डितोंने कहे हैं अर्थात् कार्यसिद्धिकारक पन्दरह विंशोपक होता है॥ ६४ ॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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