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________________ संस्कृतटीका-भाषाटीकासमेतः। (४१) अर्थ-अब अष्टम द्वारमें इष्टघटी साधनके प्रकार कहते हैं-कि, दिनमें जिस समय इष्टघटी जाननी हो, उसी समय अपने शरीरकी छायाको अपने पाँवसे मापे, परन्तु जहां खडा हो उस पाँवको छोडके जो संख्या हो उसमें सात और मिलाकर भाजक कल्पना करे । अब इसी भाजकसे मकरादिसे मिथुनान्त पर्यन्त अर्थात् सौम्यायन जबतक रवि रहे तबतक एकसौ चौवालिस १४४ में भाग दे, और कर्कादि छ राशियोंमें रवि हो तो एकसौ पैंतीस १३५ में भाग दे जो लब्ध हो, उसमें दोपहरसे पहिलेकी इष्टवटी हो तो एक घटा देनेसे और दिनार्धसे ऊर्ध्व हो तो एक जोड देनेसे इष्टवटी होती है ॥ ५५॥ इतीष्टघटीज्ञानद्वारम् ॥ ८ ॥ इन्दुः सर्वत्र बीजाभो लग्नं तु कुसुमप्रभम् ॥ फलेन सदृशोऽशश्वभावःस्वादुसमः स्मृतः॥५६॥ ___ सं० टी०-अथ लग्नविचारद्वारम्-सर्वकार्येषु अतीतानागतवर्तमानरूपेषु चन्द्रमाः बीजतुल्यः, कोऽर्थः-यस्मिन् लग्ने वा स्थाने वा चन्द्रमा भवति तत्र विचारणीयम् । यच्च लग्नस्य बीजं यावन्तो विंशोपकाः लग्नं पश्यति चन्द्रस्तावदिशोपका लग्ने बीजमिति भावः । अर्थाच्चन्द्रबले सति बीजबलमित्यर्थः । तथा वर्तमानं विचार्य लग्नं कार्यलतायाः कुसुमतुल्यं, यादृशं "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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