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भुवनदीपकः। सं० टी०-अथ ग्रहाणां पित्तादिधातुज्ञानमाह-रोगिणां पृच्छायां वा जन्मकाले यदि सूर्यमंगलौ मूर्ती स्यातां तदा पित्तभाव वदतः। भार्गवः शुक्रः शीतगुश्चन्द्रः श्लेष्मविकार कथयतः।ज्ञगुरू समधातुभावम् । राहुशनी पवनं वातप्रकोपम्२६
अर्थ-अब रोगादिप्रश्नद्वारा या जन्मपत्रद्वारा मनुष्योंकी प्रकृति जाननेके लिये ग्रहोंकी प्रकृति कहते हैं-सूर्य और मंगल पित्तप्रकृतिवाले हैं, शुक्र और चंद्रमा कफप्रकृतिवाले हैं, बुध और बृहस्पति समधातुवाले हैं अर्थात् पित्त, कफ और वायु ये तीनों सम हैं । राहु और शनि वातप्रकृतिवाले हैं। इसका तात्पर्य यह है कि, प्रश्नसमयमें या जन्मपत्रादिमें जो ग्रह बलवान् होकर लग्नको देखे या युक्त हो उस ग्रहकी प्रकृति प्राणको कहनी चाहिये ॥ २६ ॥ कुजाकौँ कटुको जीवो मधुरस्तुवरो बुधः॥ क्षाराम्लो चन्द्रभृगुजौ तीक्ष्णौसर्किनन्दनौ ॥२७
सं० टी०-अथ ग्रहाणां रसज्ञानमाह-कुजो मंगलः, अर्कः सूर्यः द्वावपि कटुकस्वभावौ । गुरुः मधुरस्वभावः । बुधस्तुवरः कषायप्रकृतिः । चन्द्रः क्षारः । शुक्रः अम्लः । राहुशनी तीक्ष्णौ, क्रूरप्रकृतिकवादिति भावः ॥ २७ ॥ ___ अर्थ-यह प्राणी किस रसका प्रिय है, इसको जाननेके लिये ग्रहोंके रस कहते हैं-मंगल और रवि कडुवा रसके प्रिय हैं, बृहस्पति मधुर
"Aho Shrut Gyanam"