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________________ संस्कृतटीका-भाषाटीकासमेतः। (११) वर्जित सब ग्रह नवम और पञ्चमको द्विपाद दृष्टिसे देखते हैं, परन्तु गुरु इन दोनों स्थानोंको पूर्ण दृष्टि से देखता है । फिर मंगलवर्जित सब ग्रह चतुर्थ और अष्टमको त्रिपाद दृष्टि से देखते हैं, परन्तु मंगल इन दोनों स्थानोंको पूण देखता है और सप्तमको सब ग्रह पूर्ण देखते हैं। इसके चक्र भी लिखते हैं। अथ दृष्टिचक्रम् । | प्रहाः । रवि | चन्द्र | मंगल बुध | बृ. । शुक्र । शान | राहु | ३-१०३-१०३-१०३-१० ३-१० ० स्थान द्वि.दृ. स्था, त्रि. ह. स्था. पूर्ण इ. स्था, पहाः चन्द्र शक एकपाददृष्टि '-८ ० ४-८४-८४-८४-८४-८ १० X Ramanand इससे सिद्ध हुवा कि, प्रथम, द्वितीय, छठे, ग्यारहवें, बारहवें स्थानोंपर ग्रहोंकी दृष्टि नहीं होती, इसमें एक स्थान स्थित ग्रह युक्त कहलाता है, इसीलिये दृष्टिका उपादान नहीं होनेसे भी पूर्ण फल दायक होता है ॥ २५ ॥ पित्तं प्रभाकरक्ष्माजौ श्लेष्मा भार्गवशीतगू ॥ ज्ञगुरू समधातू च पवनौ राहुमन्दगौ ॥२६॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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