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संस्कृतटीका - भाषाटीकासमेतः ।
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अर्थ- स्त्री भाव ( सप्तम ) का विचार शुक्र विना नहीं होता है और शनैश्वर विना धर्म ( नवम ) भावका विचार नहीं होता है सूर्यके बिना कर्म ( दशम) भावका विचार नहीं होता है, बुध और चन्द्रमा विना लाभ ( एकादश ) भावका विचार नहीं होता है, बृहस्पति के विना विद्याभाव ( पञ्चमस्थान ) का विचार नहीं होता है, मङ्गलके विना पितृस्थानका विचार नहीं होता है, चन्द्रमाके विना मृत्यु और अन्यभी सभी भावोंका विचार नहीं है अर्थात् चन्द्रबल सभी भावों में देखना मुख्य और शुक्र तथा चन्द्रमा विना पुत्र ( पञ्चम ) भावका विचार नहीं होता है अर्थात् जो ग्रह जिस स्थानका कहा है उसका योग दृष्टिसे उस भावकी वृद्धि अन्यथा हानि होती है ॥ १६७ ॥
लग्नं १ चन्द्रोऽस्ति यस्मि २ स्तदथ दिनमणियंत्र ३ तद्यत्र जीवस्तन्नीचोऽस्तंगतो वा न यदि सुरगुरुर्वतश्चेत्तदाद्यम् ४ ॥ वित् १ काव्य २ क्ष्मांगजानां ३ भवति किल बली यस्त्रयाणां तदीयं दौर्बल्यं यत्र मन्दस्तदपि च न बली शिष्टयोर्यस्तदीयम् ॥ १६८ ॥
सं० टी० - प्रच्छकस्य वेलायां तात्कालिकमुदितं लग्नं निरीक्षणीयम् १, द्वितीये प्रश्ने यस्मिन्भावे चन्द्रोऽस्ति तं भावमादौ कृत्वा निरीक्ष्यम् २, तथा तृतीयप्रश्ने यत्र स्थाने सूर्यस्तमाद।
"Aho Shrut Gyanam"