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(१२२) भुवनदीपकः। विधाय दृश्यम् ३, तच्चतुर्थप्रश्नवेलायां यत्र बृहस्पतिः स्यातदाद्यम् आदौ करणीयम् ४, परं स नीचास्तंगतो वक्रितोपि न स्यात्तदा, तदनंतरं पञ्चमे प्रश्ने विकाव्यक्ष्मांगजानां भवति किल बली यस्तदीयं क्रमेण, बुधशुक्रमंगलानां मध्ये बलवान् यो यत्र स्थाने तदीयमाद्यं करणीयम् ५, षष्ठे प्रश्न शनिः स शनिः निर्बलश्चेत्तदा शिष्टयोः प्रागुक्तयोर्बुधशुक्रयोः शुक्रबंगलयोर्बुधभौमयोर्मध्ये यो बली बलवांस्तदीयस्थानमायं करणी. यम् । एवं षट् प्रश्नलग्नानि ॥ १६८ ॥
अर्थ-अब एक समयमें अनेक प्रश्नोंका उत्तर करनेका प्रकार लिखते हैं-प्रथम प्रश्नमें लग्नपरसे विचार करना चाहिये, द्वितीय प्रश्नमें जिस राशिपर चन्द्रमा हो उस राशिको लग्न कल्पना करे, तीसरे प्रश्यमें रवि जिस राशिमें हो उसीको लग्न कल्पना करे, चौथे प्रश्नमें गुरु जिस राशिमें हो उसी राशिको लग्न कल्पना करे परन्तु यदि गुरु नीच, अस्त और वक्री न हो तो । इसके अनन्तर पञ्चम प्रश्नमें बुध, शुक्र मंगल इनमें जो बली हो उस ग्रहके स्थानको लग्न कल्पना करे, छठे प्रश्नमें शनैश्चर जिस राशिमें हो उसी राशिको लग्न माने परन्तु यदि शनि निर्बल हो तो पूर्व कहे ( शुक्र, बुध, मंगल) मेंसे जो दो अवशिष्ट हैं उनमेंसे जो बली हो उसकी राशिको लग्न कल्पना करे ॥ १६८ ॥ एवं षट्प्रश्नलग्नान्यथच षडपराण्येवमेषां द्वितीयान्येतेनैवक्रमेण स्फुटमिदमुदितंद्वादशप्रश्नलग्नम् ॥
"Aho Shrut Gyanam"