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________________ संस्कृतीका - भाषाटीकासमेतः । ( १०१ ) अर्थ - यदि प्रश्न लग्नस्वामी या प्रश्नलग्नसे अष्टमभावका स्वामी सप्तमस्थान में हो तो जलके बीच में नौका भ्रमण कर रही है ऐसा कहना चाहिये ॥ १४३ ॥ नीचस्थोऽस्तमितो वा मृत्युपतिर्नवमगो रिपुक्षेत्रे || नीचोवा भवतियदा व्यवहृतलाभो भवेन्न तदा १४४ सं० टी० - अत्रैव प्रश्ने यदि मृत्युपतिनचक्षेत्रेषु गतस्तथाऽस्तं गतो वा सन् नवमे स्थाने रिपुक्षेत्रे भवति इति प्रकार - त्रयेण मृत्युपतिसम्बन्धिना न लाभः अथवा यत्र कुत्रापि वर्तमानो मृत्युपतिः स्वयं नीचो भवति एक एव तदा वक्तव्यं नावागतवस्तुव्यवहारे लाभो न भविष्यतीति ॥ १४४ ॥ इति नौमृतिवन्धनत्रयद्वारं त्रिंशम् ॥ ३० ॥ अर्थ-यदि अष्टमस्थानका स्वामी नीचराशिमें या सूर्यके साथ होकर प्रश्नलनसे नवम स्थानमें हो अथवा केवल शत्रुगृह या अपने नीचराशिमें होकर जिस किसी स्थानमें हो तो उस वस्तुसे लाभ नहीं होय ॥ १४४ ॥ इति नौमृतिबन्धनद्वारम् ॥ ३० ॥ लग्रे यदिह विचारो भवति नवांशकगतैर्य हैस्तत्र | बीजं गुरूपदेशो लग्ग्रनवांशोऽन्यथायुक्तम् ॥ १४५॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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