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________________ ( १०२ ) भुवनदीपकः । | सं० टी० - अथातीतदिनलाभादिविचारद्वारमाह-" शुक्रो वा चन्द्रमा वापि नेक्षते यदि पञ्चमम् । तदा पुत्रस्य पृच्छायां पुमान् नास्तीति कथ्यते ॥ यदीन्दुः शुक्रभौमाभ्यां गर्भो वा वीक्ष्यते यदा । तदाऽसौ जायते पुत्रो नात्र कार्या विचारणा ॥ " इहेति । अतीतदिन फलप्रश्ने यो विचारो लग्ने भवति सर्वोऽपि तत्काल पृच्छालग्ने नवभागीकृते वर्तमानमंशं गृहीत्वा तत्र स्वांशस्थ ग्रहैर्विचार्य तदनुसारेणातीतदिनफलं वाच्यम् । न ह्यत्र ग्रन्थकारेण नवांशकानयनं तत्फलादि चोक्तमित्याहबीजं गोप्यं बीजाक्षररूपम् इति यावत् । गुरूपदेशादेवावगन्तव्यम् । अन्यथा गुरूपदेशं विनाऽयुक्तमेवाम्नायाभा वात् ॥ १४५ ॥ --- अर्थ - यहाँ एकतीसवें द्वारमें बीतेहुए समय में लाभालाभादि कैसा हुवा है इसका विचार लिखते हैं - कोई पूछे कि, हमको गत समयमें क्या सब फल हुवा है? वहां लग्नपरसे जो कुछ विचार अन्यप्रश्नोंमें पूर्व कहे हैं सो सब जिस नवांश में ग्रह हों उसीसे विचारना चाहिये परन्तु नवशिघर से फलादेश कहनेके लिये गुरुका उपदेशही बीज है इसलिये बिना गुरुके उपदेश से नवांशफल कहना अयुक्त है ॥ १४९ ॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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