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________________ स्कृतटीका-भाषाटीकासमेतः। (९९) सं० टी०-वहित्रस्य प्रवहणस्यागमनं क्षेमायातम् १ जले बुडनम् २ जले प्लवनम् ३ जलमध्ये वस्तुलंघनं पण्यानां प्रवइणागतयाणकानां व्यवहारे लब्धिभिः ४ इति नौविषये प्रश्नचतुष्टयं भवतीति ।। १४० ॥ अर्थ-नौकाके सम्बन्धसे चार प्रकारके प्रश्न होते हैं-एक तो नावका कुशलपूर्वक आगमन, दूसरा जलमें डूब जाना, तीसरा वायु आदिसे इधर उधर जल में घूमते रहना, चौथा नावमें आईहुई वस्तुसे लाभ होना ये चार प्रकारके प्रश्न हैं ॥ १४ ॥ क्षेमागमनपृच्छायां मृत्युयोगोऽस्ति चेत्तदा ॥ क्षेमेणायाति नौः पण्यलाभो व्यवहृतो भवेत् १४१ सं० टी०-आद्यन्तप्रश्ने' फलमाह-प्रवहणस्य क्षेमागमनप्रश्ने यदि पृच्छालग्ने प्रामुक्तमृत्युयोगो भवेत् तदा वाच्यं नौः मेणायाति । तथा पण्यव्यवहारे लाभप्रश्ने प्राग्वदेव मृत्युयोगः स्यात्तदानीं तव वस्तुव्यवहारे महालाभ एवेति ॥ १४॥ । अर्थ नाव आनेके प्रश्नमें तथा नावमें आयीहुई वस्तुसे लाभप्रश्नमें पूर्वोक्त (छब्बीसमें द्वारमें कहेहुये ) योग हों तो कुशलएक नावका आना और नावमें आई हुई वस्तुका व्यवहार करनेसे लाभ होता है ॥ १४१ ॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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