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________________ (९८) भुवनदीपकः । क्षेमेण नौः समायाति मृत्युयोगे समागते ॥ आमयावी सम्रियते बद्धः शीघ्रेण मुच्यते १३९ सं०टी० - अथ नौमृत्युबन्धद्वारमाह - ' यस्मिन् लग्ने स्मरे व्यये' इत्यादिश्लोकोक्को मृत्युयोगो भवति तदा वाच्यं धरणकं बद्धं मुक्तं भविष्यति तथा नावागमनप्रश्नेऽपि प्राग्वत् मृत्युयोगो भवति तदा क्षेमेण नौका समाजात इति वाच्यम् । परन्तु आमयाविनो रोगिणः पृच्छायां तु मरणमेवेति । बद्धप्रश्नेऽपि मृत्युयोगे सति बद्धः शीघ्रं मुक्तो भविष्यतीति श्लोकद्वयार्थः ॥ १३८ ॥ १३९ ॥ अर्थ - अब तीसवें द्वारमें मरण, बन्धन और नौकाके प्रश्नमें विचार लिखते हैं-मृत्यु, बन्धन, नौकाका आगमनादि ये तीनों फलसे समान हैं क्योंकि, छब्बीसवें द्वारमें रोगप्रश्न में जिन योगों से मरण कहा है, वेही योग बन्धन प्रश्न में हों तो बन्धन से छूटता है और नौका प्रश्न में हों तो नौका कुशलपूर्वक आती है परन्तु पूर्वोक्त मृत्युयोगोंमें रोगीका प्रश्न हो तो मरणही होता है ॥ १३८॥१३९॥ क्षेमायातं वहित्रस्य बुडनं पुवनं जले ॥ पण्यव्यवहृतौ लब्धिर्नाविप्रश्नचतुष्टयम् ॥ १४० ॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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