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________________ (९६) भुवनदीपकः। ऐसा पण्डितलोग कहते हैं । यहां किस वस्तुका कौन स्वामी है, इसको जाननेके लिये संस्कृतटीकाके श्लोकार्थ लिखते हैं-रसोंके स्वामी चन्द्रमा है, सस्यका स्वामी बृहस्पति, प्राणियोंके स्वामी शुक्र, काउनि, कोदो, उडद, तिल, नमक और जितनी कृष्ण वस्तु हैं उन सभीका स्वामी शनैश्चर है। सोना, पीला धान्य, जौ, गेहूँ, घृत, शालिधान्य, ऊख इन सभीका स्वामी बृहस्पति है, सस्योंके शुक्र, दलिहन (दाल) का बुध, तेल, रस और सुगन्धयुक्त पदार्थका स्वामी रवि है और भण्डारमें रखा हुआ धान्य तथा चावलका स्वामी मंगल है ॥ १३५ ॥ क्रयाणकानां पृच्छायां सौम्या ज्ञेया महात्मभिः॥ समर्ष सबले लग्ने महर्षमबले पुनः ॥ १३६॥ सं० टी०-अथोपसंहरन्नाह-क्रयाणकानां वस्तूनाम् इयं पृच्छा सौम्या ज्ञेया । कथमित्याह-महात्मभिः समर्धं सबले लग्ने, महर्घमबले, पुनः सम्यक् विनिश्चित्य वाच्यामिति भावः ॥ १३६ ॥ . अर्थ-क्रय विक्रय प्रश्नमें प्रश्नलग्न बलवान् हो तो उस वस्तुकी सस्ती और लग्न निर्बल हो तो महँगी होती है, ऐसा महात्मा लोगोंसे कहा गया है ॥ १३६ ॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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