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मंगल भावना
श्री संपन्नोऽहं स्याम्
ही संपनोऽहं स्याम्
धी संपन्नोऽहं स्याम्
धृति संपन्नोऽहं स्याम्
शक्ति संपन्नोऽहं स्याम्
शांति संपनोऽहं स्याम्
मैं आभा सम्पन्न बनूँ
मैं लगा सम्पन्न बनूँ
मैं बुद्धि-सम्पन्न बनूँ
मैं धैर्य सम्पन्न बनूँ
मैं शक्ति सम्पन्न बनूँ
मैं शांति सम्पन्न बनूँ
मैं आनन्द सम्पन्न बनूँ
मैं तेज सम्पन्न बनूँ
मैं पवित्रता सम्पन्न बनूँ
नन्दी संपन्नोऽहं स्याम्
तेजः संपन्नोऽहं स्याम्
शुक्लः संपन्नोऽहं स्याम्
( बहनें संपन्नोऽहं के स्थान पर संपन्नाऽहं का उच्चारण करें।)
सभी के लिए मंगल भावना
सर्वे धाम स्वस्थि भवतु
सर्वे धाम शांति भवतु
सर्वे धाम मंगलं भवतु
सर्वे षाम पूर्ण भवतु ॐ शांतिः शांतिः शांतिः
ग्रह
अर्हमित्यक्षरं ब्रह्मवाचकं
परमेष्ठिनः । सिद्धचक्रस्य सद्बीजं सर्वतः प्रणिदध्महे ॥
अहं - यह अक्षर ब्रह्म स्वरूप है। पंच परमेष्ठी का वाचक है। सिद्ध चक्र का मूल
बीज है। मन-वचन-तन की एकलयता के साथ हृदय कमल में इसका ध्यान करो।
बनें अर्हम्
तत्त्वेषु मननं कार्य, तस्माज्ज्ञानं विवर्धते । सुज्ञानी व्रतमाप्नोति, व्रती चानन्दमश्नुते ॥
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游
बनें अर्हम्
अर्हम्
ॐ अर्हम्, सुगुरु शरणं, विघ्न हरणं, मिटे मरणं,
सहज हो मन, जगे चेतन, करें दर्शन, स्वयं के हम।
बनें अर्हम्, बनें अर्हम् बनें अर्हम्, बनें अर्हम् ॥
बनें
अर्ह अहं का ध्यान
अर्ह अहं का ध्यान लगाऊं। सांसों का इकतारा बजाऊं ।।
ज्योतिर्मय चिन्मय है आत्मा, शुद्धात्मा ही है परमात्मा । कर्मों की दीवार हटाऊं।।
इन्द्रिय-सुख को सब कुछ माना, वस्तु-जगत का कण-कण छाना । आत्मानंदी अब बन जाऊं।।
दौड़ रहा मन तृष्णा से जकड़ा, परमारथ का पंथ न पकड़ा। अपने घर का परिचय पाऊं।।
आत्मा के द्वारा आत्मा की प्रेक्षा, ऋजुता मृदुता की अनुप्रेक्षा ।
ज्ञाता द्रष्टा भाव जगाऊं । ।
मैत्री करुणा का फूल खिला है, आत्म-तुला का बोध मिला है। 'अपना पराया' भेद मिटाऊं।।
अजपाजाप 'कनक' का अर्ह, सोते-जगते अर्ह अहं
छूटे अहं, अर्ह पद पाऊं।।
तर्ज वार्षिक मर्यादोत्सव आया...
तरों पर मनन करना चाहिए मनन से ज्ञान वृद्धिगत होता है। सम्यक ज्ञानी व्रत को प्राप्त होता है और व्रती विशुद्ध आनन्द को प्राप्त होता है।
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