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________________ म चतुर्विंशति-स्तव ॥ सिद स्मरण वंदेमु विमला आबच्चेसु अहिले पचासखस > नमस्कार मंत्र की मौलिक विशेषताएँ १. नमस्कार मंत्र में कसी व्यक्ति विशेष को नमस्कार नहीं करके वितराग तथा त्यागी आत्माओं को नमस्कार किया है। २. इस मंत्र की कोई एक अधिष्ठता देव नहीं है, यह मंत्र सभी शक्तियों के ऊपर है। बिना किसी प्रयास से जाना जा सकता है। ३. इस मंत्र में १४ पूर्वो का सार माना गया है। ४. यह मंत्र अनादि मंत्र है। सामान्यतः दो प्रकार के मंत्र होते हैं1) जिनकी रचना बीजाक्षरों के द्वारा हुई है। 2) जो उच्चारण में कठिन और गूढ़ अर्थवाले होते हैं। नमस्कार महामंत्र न बीजाक्षरों से निर्मित है और न गूढ अर्थवाला है। प्राकृत भाषा का है तथापि सरल, सुबोध और सहज शुद्ध उच्चारण कर सकते हैं। नमस्कार महामंत्र के बारे में जितना लिखा जाए उतना कम है। एक श्लोक बहुत ही सुंदर है, जिससे हम नमस्कार महामंत्र का महात्म्य समझ सकते हैं। किं एस महारयणं किंवा चिंतामणि तु नवकारो। किं कप्पधुमसरिसो न हुनहु तओ णि अहिययुरो॥ क्या नमस्कार महामंत्र महारत्न है? क्या ये चिंतामणी रत्न तुल्य है? क्या कल्पद्रुम सादृश्य है ? नहीं-नहीं। यह तो उन सबसे भी अधिक अर्थात उत्कृष्ट है। क्योंकि रत्न, चिंतामणि, कल्पवृक्ष तो एक जन्म में ही काम आते हैं. जबकि नमस्कार महामंत्र तो जन्म जन्म तक काम आता है। सिदा सिदिमम दिसत लोगरस पाठ: सामायिक में अनेक अलग-अलग प्रयोग किये जाते है। प्रत्येक व्यक्ति सामायिक में अलग-अलग स्वाध्याय करते हैं। हर एक का अपना स्वाध्याय और अपना तरीका होता है। फिर भी सामायिक में नमस्कार महामंत्र, मंगलपाठ और लोगस्स पाठ जैसी कुछ बातें सभी करते ही हैं। अभी तक हमने मंत्र, प्रेक्षाध्यान, अठारह सावध प्रवृत्तीया देखी। अब हम 'चतुर्विंशति-स्तव' यानी 'लोगस्स पाठ' के बारे में थोड़ी जानकारी लेते हैं। बने अहम भोगेन सहयोगः स्याद, गृहस्थस्यापि जीवने । केवलेन त भोगेन, गार्हस्थ्यं दुखितं भवेत्॥ बन अहमोग से गाय का जीवन दुखमय बन जाता है। अशा गृहस्थ जीवन में भोजन के साथ योग की साधना भी होनी चाहिए।
SR No.009660
Book TitleBane Arham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlka Sankhla
PublisherDipchand Sankhla
Publication Year2010
Total Pages49
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size57 MB
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