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णमोक्कार मंत्र को महामंत्र कहने का कारण यही है कि इसमें पंच परमेष्ठी को नमस्कार किया है, परमेष्ठी किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं, जिनकी साधना सिद्धि तक पहुंच चुकी है अथवा साधना पथ पर आरुढ़ हैं वे परमेष्ठी हैं। यहाँ व्यक्ति विशेष नहीं व्यक्ति के गुणों की पूजा है। इस मंत्र द्वारा आध्यात्मिक विकास होता है। आत्मजागरण का यह मंत्र है। भौतिक कामना पूर्ति के लिए अनेक मंत्र है, परंतु कामना पूर्ति के बदले कामना समाप्त करने वाला यह मंत्र है, इसलिए यह महामंत्र है। सब मंगलों में मंगल और सब पापों का नाश करने वाला है।
दशवैकालिक में सूत्र है - 'धम्मो मंगल मुक्किट्ठ' धर्म सर्वोत्कृष्ट मंगल है। धर्म यानी आत्मा में रहना। आत्मा से बाहर, अमंगल है। णमोकार मंत्र आत्मा के निकट रहने का मंत्र है। इसलिए यह मंत्र सब मंगलों में प्रधान मंत्र है।
दैनिक चर्या के साथ महामंत्र का जाप कब करना है?
श्रावक चर्या के बारे में आज तक अनेक ग्रंथ लिखे गये हैं। उन सभी ग्रंथों में श्रावक का प्रत्येक दैनिक क्रम इस महामंत्र से प्रारंभ हो। १) शय्या त्याग करके तुरंत महामंत्र का उच्चारण करें। २) स्नानादि आवश्यक क्रिया के बाद एकान्त में पूर्ण मालाजाप। ३) स्वाध्याय, अध्ययन शुरु करने से पूर्व महामंत्र का स्मरण। ४) सामायिक पाठ बोलने से पूर्व और पश्चात् महामंत्र का जाप।
कोई पूजा, धार्मिक विधि, नया काम शुरु करने से पहले जाप। नाश्ता-खाने के पहले महामंत्र का उच्चारण करना न भूलना।
रात को शय्या पर जाते ही महामंत्र का स्मरण कर नींद ले। ८) यात्रा, घर के बाहर जाने से पहले मंत्र का स्मरण करें। ९) जन्म, मृत्यु, विवाह सभी संस्कारों के आरम्भ और समापन में न.म. जाप करें। १०) भय, चिंता, संकट, कलह, संयम के समय मंत्र जाप करें। ११) नये घर में प्रवेश, दुकान का मुहुर्त सविधि महामंत्र जाप। १२) हर त्यौहार के दिन, प्रतिक्रमण के पूर्व परीक्षा के समय जाप। १३) अपना आत्मविश्वास बनाये रखने के लिए नित्य जाप।
सत्यमेव गुरुोके, सत्यमेव परं तपः । बन अहम्
सत्यमेव पिता लोके, माता सत्यं सरखा पुनः ।
जप के प्रकार और विधि सबसे पहले दृढ़ संकल्प चाहिए, नियमित अभ्यास चाहिए। मंत्र जाप के समय एकाग्रता चाहिए।मंत्र आराधना क्षेत्र में, भावना और वातावरण का प्रभाव होता है, रंगों का प्रभाव होता है।
नमस्कार महामंत्र अध्यात्म मंत्र है। उसके जप एवं ध्यान के लिए किसी विशेष समय एवं व्यवस्था की आवश्यकता नहीं। यह मंत्र सर्वकाल, सर्व क्षेत्र में ध्यातव्य और जपनीय है। जप और ध्यान में मन, वचन और काया की एकाग्रता से होता है। प्रातःकाल शांत, प्रसन्न होता है, तब इसका जप, सरल और सहजता से होता है। मंत्र जाप के समय शुद्धाशुद्धि का अपना महत्त्व है। भाव शुद्धि, विशुद्ध भाव से परिणाम मिलते हैं। निर्मल भाव अवस्था ही कर्मों को क्षीणकार चेतना को निर्मल बनाती है।
नमस्कार महामंत्र की अर्हता
नमस्कार महामंत्र की अर्हता अचिंतनीय है, जिसकी सामान्य व्यक्ति कल्पना भी नहीं कर सकता। नमस्कार महामंत्र के कारण लाखों लोगों ने अपने जीवन को पवित्र एवं समतामय बनाया है।
अपवित्रः पवित्रो वा सुस्थितो दुःस्थितोऽथवा।
ध्यायन पंच नमस्कार सर्वपापैः प्रमुच्यते। पवित्र अथवा अपवित्र, सुख अथवा दुःख किसी भी स्थिति में नवकार मंत्र का जाप करने वाला मुक्त हो जाता है।
महामंत्र की साधना-कैसे करे?
मंत्र शास्त्र में साधना की अनेक प्रणालियों का उल्लेख मिलता है। मन, वचन, काया की स्थिरता और एकाग्रता सबसे महत्त्वपूर्ण है। जप में स्थूल, सूक्ष्म और सूक्ष्मतम ध्वनि के अलग-अलग स्तर बनते हैं। इसे ही वैखरी, मध्यमा और पश्यन्ती कहते है।
साधारण लोग बोलते है, वह स्थूल ध्वनि, जो मुख्यतः शरीर और कर्णेन्द्रिय को प्रभावित करती है। इस ध्वनि से मंद स्वर में बोली जाती व सूक्ष्म ध्वनि जो मन को प्रभावित करती है। पश्यन्ति अत्यंत सूक्ष्म ध्वनि, वाणी का मन के साथ योग, यह ध्वनि
बने अर्हम
लोक में सत्य ही गुरु है. सत्य ही परम तप है,
साथ ही मिला है, मारता है और जिम है।