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॥ नमस्कार महामंत्र है आवश्यक नियुक्ति में एक महत्त्वपूर्ण सूचना मिलती है। नियुक्तिकार में लिखा है - पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार कर सामायिक करना चाहिए। पंचनमस्कार सामायिक का एक अंग है। इस निष्कर्ष से यही लगता है कि नमस्कार महामंत्र उतना ही पुराना है जितना सामायिक सूत्र।
जैन परम्परा का महामंत्र माना जाता है। जैन शासन में आज तक अनेक सम्प्रदाय बने, शाखा प्रशाखाएँ निकली। उत्तर कालीन जैन साहित्य में घोर पक्षापक्षी की झलक आयी, हर साम्प्रदाय का अपना कुछ अलग हैं परन्तु नमस्कार महामंत्र की निर्विकल्प आस्था पर कोई असर नहीं आया।
इसके अर्थ व भाव से यह किसी भी धर्म या संप्रदाय का अपना महामंत्र माना जा सकता है। नमस्कार महामंत्र के शब्दों का संगठन अत्यंत प्रभावशाली है। नमस्कार महामंत्र जैसे सर्व-शक्ति-सम्पन्न मंत्र, धरातल पर विरल है। यह एक श्रेष्ठ मंत्रों में एक है। परम उपकारी यह मंत्र सब पापों का नाश करनेवाला है। सब मंगलों में प्रथम मंगल है।
नवकार मंत्र जिनशासन का सार है। चौदह पूर्व से इसका समुद्धार हुआ है। जिसके मन में नवकार है, उनका कभी अनिष्ट नहीं हो सकता। नमस्कार महामंत्र केवल जैन परम्परा को मानने वालों के लिए ही श्रेयस्कर हो, ऐसा नहीं है। यह सभी के लिए समान रुप में लाभप्रद है। मंत्र जैन अजैन नहीं होता। 'मंत्र' मंत्र होता है। उसके सामर्थ्य का उपयोग कोई भी करना चाहे, तो उसे निश्चित सफलता मिलती है। जाति, लिंग, भाषा आदि उसमें बाधक नहीं बनते।नमस्कार महामंत्र सद्धर्म और सद्कर्म का सार है।
नमस्कार महामंत्र सब मंत्रों का स्त्रोत है और इसमें समस्त ऋद्धियां निहित है। नमस्कार महामंत्र अपराजित मंत्र है। इसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। यह अनुपम है, जगत प्रसिद्ध है और जगत वंदनीय है। नमस्कार महामंत्र दुःख को हरण करता है, सुख की प्राप्ति करता है।
मंत्र अपने आप में रहस्य होता है, किन्तु नवकार महामंत्र तो परम रहस्य है, बल्कि रहस्यों का रहस्य है। नमस्कार महामंत्र परममंत्र, परम रहस्य, परम से भी परम तत्व है, परमज्ञान, परमज्ञेय है शुद्ध ध्यान है, शुद्ध ध्येय है।
ऐसो परमो मंतो परम, रहस्सं परं परं तत्तं ।
नाणं परमं नयं, सुद्ध, झाणं परं झोयं । मंगल भावनाओं तथा शुभ संकल्पों से युक्त शब्दों के सतत उच्चारण तथा चिंतन से नयी शक्ति का निर्माण होकर यह मंत्र बन जाता है। नमस्कार महामंत्र आचार में बहुत छोटा है, परन्तु उपलब्धियों तथा संभावनाओं का खजाना है। मौलिकता यह है कि मंत्र चाहे जो हो, वह जीवन से जुड़ना चाहिए। जब तक मंत्र जीवन से जीवन की अवस्थाओं से नहीं जुड़ता तब तक वह जीवन्त मंत्र नहीं बनता।
नमस्कार महामंत्र का स्वरुप मूल पदों का या यह महामंत्र, पैंतीस अक्षरों का बना है। चार महिमा के पदों के साथ नवपद और अड़सठ अक्षर हो जाते हैं। इनकी नौ सम्पदाएं हैं। नमस्कार महामंत्र के पहला पद -७, दूसरा पद - ५, तीसरा पद - ७, चौथे पद -७, पांचवे पद के - ९ सब मिलाकर ३५ अर्थात् पांच पद परमेष्ठि है।
नमस्कार के पाँच पद, अक्षर हैं पैंतीस । ग्यारह लघु चौबीस गुरु, दीर्घ पनर, हस बीस ॥ बारह आठ छत्तीस पच्चीसा, साधू सत्ताइस गुणवाला ।
एक सौ ने आठ गुणां री, आ गातो गुण माला ।। इस तरह कुल १०८ मनकों की माला का जप किया जाता है। १०८ गुण पाँच पदों की वंदना में अलग अलग बताये गये हैं।
ऐसो पंच णमुकारो, सच पावपणासणो,
मंगलाणं च सव्वेसिं, पळमं हवड़ मंगलं ॥ यह नमस्कार महामंत्र सब पापों का नाश करने वाला और सब मंगलों में प्रथम मंगल है।
बनें अहम्
अहिंसा परमो धर्मो, रागद्वेषशमात्मकः। जाजता मुद्धता मैत्री तुपिटरतस्य विभूतयः ।।
बर्ने अर्थ
आहसा पाया है। सह उपशम स्वरूप वाला है। जुला, महता, मैत्री और तुष्टि हिंसा धर्म की विभूतियां है।।