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नमस्कार महामंत्र की आराधना पाँच पदों के आदि अक्षर-अ. सि. आ. उ.सा से निष्नन्न पंचाक्षरी मंत्र ‘असिआउस' के रुप में भी की जाती है। यह पंचाक्षरी मंत्र बहुत प्रभावशाली है।
जैन परंपरा में 'ओम्' पंच परमेष्ठी के पांच वर्षों से निष्पन्न होता है। अरहन्त अशरीर, आचार्य, उपाध्याय और मुनि - इन पांच परमेष्ठियों के आदि अक्षरों का योग करने पर 'ओम्' बनता है
अ+अ+आ+उ+म= ओम्।।
आभामण्डल एवं चेतना पर आये आवरणों को प्रकंपित करती है।
स्थूल ध्वनि जिसे वैखरी कहते हैं, यह चंचल साधक के लिए आवश्यक है। मन में विकल्प उठते हैं, तभी यह जाप करने से साधक स्वस्थ एवं शान्त होता है। धीरे-धीरे सुक्ष्म और सूक्ष्मतर अभ्यास कर सकते हैं।स्थूल ध्वनि मुख्यतः शरीर और कर्णेन्द्रिय को प्रभावित करती है। सूक्ष्म ध्वनि मन को प्रभावित करती है। सूक्ष्मतम ध्वनि आभामण्डल एवं चेतना पर आये आवरणों को प्रभावित करती है।
विमुच्य निंदा चरमे त्रियामा - यामार्धभागे शुचिमानसेन ।
दुष्कर्मरक्षो दमनैकदक्षो ध्येयस्त्रिधा श्रीपरमेष्ठिमंत्र ।। चतुर व्यक्ति रात्रि के अन्तिम प्रहर के अर्द्ध भाग शेष रहते निद्रा का त्याग कर दुष्कर्म रुपी राक्षस को दमन कर मन, वचन, काया से परमेष्ठि का जप एवं ध्यान करे।नमस्कार महामंत्र में किसी व्यक्ति विशेष की आराधना नहीं, यह आत्मा के निकट जाने का मंत्र है।
मंत्र साधक के लिए आवश्यक है कि वह मानसिक स्थिरता के लिए श्वास याने स्वर की गति, आकृति, स्पर्श और उसके रंगों को समझें।
महामंत्र के उच्चारण की अनेक विधियाँ हैं जैसे शरीर के अवयव पर मंत्रजप करते हैं, रंगों के साथ जप करते हैं, श्वाँस के साथ लयबद्ध मंत्र साधना होती है, पंचतत्वों में अपना विज्ञान भी है। चैतन्य केन्द्रों पर भी जाप किया जाता है। इस प्रकार मंत्र की आराधना में जैसे क्षेत्र भावना और वातावरण का प्रभाव होता है, वैसे ही रंगों का भी प्रभाव होता है।
2 महामंत्र आराधना के विविध प्रकार
नमस्कार महामंत्र की आराधना अनेक रुपों में की जाती है। उसके पाँच पद और पैंतीस अक्षर हैं। इसकी आराधना बीजाक्षरों के साथ की जाती है, बिना बीजाक्षरों से केवल मंत्राक्षरों के साथ भी की जाती है।
'ऐसो पंच णमोकारो' इस चुलिका के पद के साथ की जाती है और इस चुलिका पद के बिना भी की जाती है। नमस्कार महामंत्र का संक्षिप्त रुप ॐ में भी की जाती है, जिसमें पांचों पद सम्मिलित है।
पूरा नमस्कार महामंत्र ओंकार में गर्भित है। एक जैन व्यक्ति 'ओंकार' का जप करते समय प्राणशक्ति से लाभान्वित होता ही है और साथ-साथ पंच परमेष्ठी से अपनी तन्मयता का अनुभव करता है, अपने शरीर के कण कण में परमेष्ठी पंचक की समस्याओं का अनुभव करता है।
जैन आचार्यो ने 'ओम्' की निष्पत्ति का एक दूसरा रुप भी प्रस्तुत किया है। अज्ञान, उ-दर्शन और म-चारित्र का प्रतीक है। इन तीनों वर्गों से निष्पन्न (अ+उ+म) ओंकार त्रिरत्न का प्रतीक है। ओंकार की उपासना करने वाला मोक्ष मार्ग की उपासना करता है, ज्ञान, दर्शन और चारित्र - तीनों की उपासना करता है। यह भावनात्मक संबंध है। इस प्रकार 'ओम्' समूची वर्णमाला और भाविक अक्षरों में एक मूर्धन्य अक्षर बन गया। शब्द उच्चारण का एक बहुत बड़ा विज्ञान है। मंत्र शास्त्र ने उस पर बहुत प्रकाश डाला है। 'ओंकार' के उच्चारण से जमे हुए मल धुल जाते हैं।
इस महामंत्र की आराधना 'अहं' के रुप में भी की जाती है। रंगों के साथ महामंत्र का जाप किया जाता है।
नमस्कार महामंत्र के आधार पर कितने मंगल मंत्र विकसित हुए हैं। नमस्कार महामंत्र से जुड़ा एक मंत्र है 'अर्हम्' । एक मंत्र है अ.सि.आ.उ.सा. । नमस्कार से बना एक मंत्र है 'ओम' । इस प्रकार नमस्कार मंत्र से जुड़े हुए पचासों मंत्र है, जो विघ्नों का निवारण करते हैं, ग्रहों के प्रभाव से बचते हैं।
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सत्येन वर्धले शक्तिः, ज्ञानं सत्येन प्राप्यते। सत्येन तावयसिद्धिः स्यात् सत्येनात्मा विशन्दयति ।।
बने अहया
सत्य से शक्ति बढ़ती है। सत्य से ज्ञान प्राप्त होता है। सत्य से सजविधिोती है। सत्य से भारमा शुद्ध होती है।