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________________ अन्य. यो. व्य. श्लोक ५] स्याद्वादमञ्जरी यदाहुः "यो यत्रैव स तत्रैव यो यदैव तदैव सः । न देशकालयोर्व्याप्तिर्भावानामिह विद्यते" ॥ न च सन्तानापेक्षया पूर्वोत्तरक्षणानां क्रमः सम्भवति; सन्तानस्यावस्तुत्वात् । वस्तुत्वेऽपि तस्य यदि क्षणिकत्वं, न तर्हि क्षणेभ्यः कश्चिद्विशेषः। अथाक्षणिकत्वं, तर्हि समाप्तः क्षणभङ्गवादः॥ नाप्यक्रमेणार्थक्रिया क्षणिके सम्भवति । स ह्येको बीजपूरादिक्षणो युगपदनेकान् रसादिक्षणान् जनयन् एकेन स्वभावेन जनयेत् , नानास्वभावैर्वा ? यचकेन तदा तेषां रसादिक्षणानामेकत्वं स्यात् , एकस्वभावजन्यत्वात् । अथ नानास्वभावैर्जनयति किञ्चिद्रूपादिकमुपादानभावेन, किञ्चिद्रसादिकं सहकारित्वेन, इति चेत्, तर्हि ते स्वभावास्तस्यात्मभूतो, अनात्मभूता वा ? अनात्मभूताश्चेत् स्वभावत्वहानिः । यद्यात्मभूताः तर्हि तस्यानेकत्वम् ; अनेकस्वभावत्वात् । स्वभावानां वा एकत्वं प्रसज्येत; तदव्यतिरिक्तत्वात् तेपां तस्य चैकत्वात् ।। पदार्थ क्षण-क्षणमें नष्ट होनेवाला है, इसलिए वह क्रमसे अर्थक्रिया नहीं कर सकता। कारण कि अनित्य पदार्थमें देश और कालकृत क्रम सम्भव नहीं। पूर्वक्रम और अपरक्रम क्षणिक पदार्थमें असम्भव है। क्योंकि नित्य पदार्थमें ही अनेक देशोंमें रहनेवाला देशक्रम और अनेक कालमें रहनेवाला कालक्रम सम्भव हो सकता है। सर्वथा अनित्य पदार्थोंमे देश और कालक्रम नहीं हो सकता । कहा भी है: "जो पदार्थ जिस स्थान ( देश ) और जिस क्षण (काल ) में है, वह उमी स्थान और उसी क्षणमें है, भणिक भावोंके साथ देश और कालकी व्याप्ति नहीं बन सकती।" यदि कहा जाय कि सन्तानकी अपेक्षासे पूर्व और उत्तर क्षणमें क्रम सम्भव हो सकता है तो यह भी ठीक नहीं। क्योंकि सन्तान कोई वस्तु ही नहीं। यदि सन्तानको वस्तु स्वीकार किया जाय, तो सन्तान क्षणिक है, अथवा अक्षणिक ? सन्तानको क्षणिक माननेपर सन्तानमें क्षणिक पदार्थोसे कोई विशेपता न होगी। अर्थात् जिस प्रकार पदार्थोके क्षणिक होनेपर उनमें क्रम नहीं होता, वैसे ही सन्तान में भी क्रम न होगा। यदि सन्तान अक्षणिक है, तो क्षणभंगवाद ही नहीं बन सकता । क्षणिक पदार्थमें अक्रमसे भी अर्थक्रिया सम्भव नहीं। क्योंकि एक बोजपूर ( बिजौरा ) आदि क्षण (बौद्ध लोग वस्तुओंको क्षण कहते हैं, क्योंकि उनके मतमें सब पदार्थ क्षणिक हैं ) एक साथ अनेक रस आदि क्षण ( वस्तु ) को एक स्वभावसे उत्पन्न करता है, अथवा नाना स्वभावसे ? यदि एक स्वभावसे उत्पन्न करता है, तो एक स्वभावसे उत्पन्न होनेके कारण रस आदि पदार्थोंमें एकता हो जानी चाहिए। यदि बोजपूर क्षण रम आदि क्षणको नाना स्वभावोंसे उत्पन्न करता है-अर्थात् किसी रूप आदिको उपादानभावसे, और किसी रस आदिको सहकारीभावसे उत्पन्न करता है तो प्रश्न होता है कि वे उपादान और सहकारीभाव बीजपूरके आत्मभूत (निजस्वभाव ) हैं, या अनात्मभूत (परस्वभाव ) ? यदि उपादानादि भाव बोजपूरके अनाम्मभूत हैं तो उपादानादि भाव बोजपूरके स्वभाव ही नहीं कहे जा सकते । यदि उपादानादि भाव बोजपूरके आत्मभूत है तो अनेक स्वभावरूप होनेसे बीजपूर पदार्थमें अनेकता हो जायेगी, अर्थात् जितने स्वभाव होंगे, उतने ही उन स्वभावोंके धारक बोजपूर पदार्थ भी होंगे। अथवा उपादानादि बोजपूर पदार्थसे अभिन्न हैं, और वीजपूर एक है, इसलिए स्वभावोंका एकत्व हो जायेगा। १. 'बोजपूरादिरूपादि' पाठान्तरम् । एते बौद्धाः क्षणशब्देन पदार्थान् गृह्णन्ति । यतः सर्वे पदार्थाः क्षणिकाः ।
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
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