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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायां [अन्य. यो. व्य. श्लोक ५ सर्वार्थहानिभावात् एवं विजयिनि निष्कण्टके स्याद्वादमहानरेन्द्रे, तदीयमुद्रां सर्वेऽपि पदार्था नातिक्रामन्ति; तदुल्लङ्घने तेषां स्वरूपव्यवस्थाहानिप्रसक्तेः।
सर्ववस्तूनां समस्वभावत्वकथनं च पराभीष्टस्यैकं वस्तु व्योमादि नित्यमेव, अन्यच्च प्रदीपादि अनित्यमेव इति वादस्य प्रतिक्षेपबीजम् । सर्वे हि भावा द्रव्यार्थिकनयापेक्षया नित्याः, पर्यायार्थिकनयादेशात् पुनरनित्याः। तत्रैकान्तानित्यतया परैरङ्गीकृतस्य प्रदीपस्य तावन्नित्यानित्यत्वव्यवस्थापने दिङ्मात्रमुच्यते ॥
___ तथाहि । प्रदीपपर्यायापन्नास्तैजसाः परमाणवः स्वरस'तस्तैलक्षयाद् वाताभिघाताद्वा ज्योतिष्पर्यायं परित्यज्य तमोरूपं पर्यायान्तरमाश्रयन्तोऽपि नैकान्तेनानित्याः ; पुद्गलद्रव्यरूपतयावस्थितत्वात् तेषाम् । न तावतैवानित्यत्वं यावता पूर्वपर्यायस्य विनाशः, उत्तरपर्यायस्य चोत्पादः । न खलु मृद्रव्यं स्थासककोशकुशूलशिवकघटाद्यवस्थान्तराण्यापद्यमानमप्येकान्ततो विनष्टम् ; तेषु मृद्रव्यानुगमस्याबालगोपालं प्रतीतत्वात् । न च तमसःपौद्गलिकत्वमसिद्धम्; चाक्षुषत्वान्यथानुपपत्तः, प्रदीपालोकवत् ।। कर सकती, क्योंकि उसके उल्लंघन करनेपर प्रजाके सर्वस्वका नाश होता है। उसी प्रकार विजयी निष्कण्टक स्याहाद महाराजाके विद्यमान रहते हुए कोई भी पदार्थ स्याद्वादको मर्यादाको अतिक्रमण नहीं करता। क्योंकि इस मर्यादाके उल्लंघन करनेपर पदार्थोंका स्वरूप नहीं बन सकता।
यहां सब पदार्थोके द्रव्य और पर्यायरूप कथन करनेसे आकाश आदिके सर्वथा नित्यत्व और प्रदीप आदिके सर्वथा अनित्यत्वका खण्डन हो जाता है । कारण कि सभी पदार्थ द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षासे नित्य और पर्यायार्थिककी अपेक्षासे अनित्य हैं । यहाँ परवादियों द्वारा मान्य दीपककी एकान्त-अनित्यतापर विचार करते हुए दीपकको नित्य-अनित्य सिद्ध करनेके लिए संक्षेपमें कुछ कहा जाता है।
दीपककी पर्यायमें परिणत तैजस परमाणु तेलके समाप्त हो जानेसे अथवा हवाका झोंका लगनेसे प्रकाशरूप पर्याय छोड़कर तमरूप पर्यायको प्राप्त करनेपर भी सर्वथा अनित्य नहीं हैं। क्योंकि तेजके परमाणु तमरूप पर्यायमें भी पुद्गल द्रव्यरूपसे मौजूद हैं। तथा पूर्व पर्यायके नाश और उत्तर पर्यायके उत्पन्न होने मात्रसे ही दीपकको अनित्यता सिद्ध नहीं होती। उदाहरणके लिए, मिट्टी द्रव्यके स्थासक, कोश, कुशूल, शिवक, घट (मिट्टी के पिण्डसे घड़ा बनने तककी उत्तरोत्तर अवस्थाएँ) आदि अवस्थाओंको प्राप्त कर लेनेपर भी मिट्टीका सर्वथा नाश नहीं होता। क्योंकि स्थासक आदि पर्यायोंमें प्रत्येक पुरुषको मिट्टीका ज्ञान होता है। अन्धकारको भी पुद्गलको ही पर्याय मानना चाहिए, क्योंकि दीपकके प्रकाशकी भांति वह भो चक्षुसे दिखाई देता है । जैनदर्शनके अनुसार संसारके समस्त पदार्थोंमें नित्यत्व और अनित्यत्व दोनों धर्म विद्यमान है। इसलिए दीपकमें भी नित्यत्व और अनित्यत्व धर्म पाये जाते हैं। दीपकका अनित्यत्व सर्व साधारणमें प्रसिद्ध ही है। इसलिए यहाँ दीपकमें केवल नित्यत्व सिद्ध किया जाता है। नैयायिक लोग अन्धकारको अभावरूप मानते हैं, इसलिए नैयायिकोंके अनुसार अन्धकार कोई स्वतन्त्र पदार्थ न होकर केवल प्रकाशका अभाव मात्र है। इसलिए तमको अभावरूप माननेसे नैयायिक दीपकको नित्य नहीं मानते । परन्तु जैनसिद्धान्तके अनुसार तम केवल प्रकाशका अभाव मात्र नहीं है, वह प्रकाशकी भांति ही स्वतन्त्र द्रव्य है। जैनदर्शनमें प्रकाशकी भांति अन्धकारको भी पुद्गलकी पर्याय माना है। तेजके परमाणु दीपकके प्रकाशको पर्यायमें परिणत होते हैं। जब तेल आदि समाप्त हो जाता है, अथवा हवाका झोंका लगता है, उस समय ये ही परमाणु-प्रकाशकी पर्याय छोड़कर तमकी पर्यायमें परिणत हो जाते हैं। जैनदर्शनके अनुसार केवल पर्यायान्तरको प्राप्त करना ही अनित्यत्वका लक्षण नहीं है। उदाहरणके लिए, मिट्टीका घड़ा बनाते समय मिट्टी अनेक पर्यायोंको धारण करती है, परन्तु इन अनेक पर्यायोंमें मिट्टीका नाश नहीं हो जाता, मिट्टो हरेक पर्यायमें
१. स्वभावतः । २. स्थासककोशादयो घटस्योत्पत्तेः प्राक मुद एवावस्थाः।