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नमः सर्वज्ञाय श्रीरायचन्द्रजैनशास्त्रमालायां
श्रीमल्लिषेणसूरिप्रणीता
स्याद्वादमजरी कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्यविरचिता 'अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिकास्तवनटीका
हिन्दीभाषानुवादसहिता।
टीकाकारस्य मंगलाचरणम् यस्य ज्ञानमनन्तवस्तुविषयं यः पूज्यते दैवतैनित्यं यस्य वचो न दुर्नयकृतैः कोलाहलै प्यते । रागद्वेषमुखद्विषां च परिषत् क्षिप्ता क्षणायेन सा स श्रीवीरविभुर्विधूतकलुषां बुद्धि विधत्तां मम ॥१॥ निस्सीमप्रतिभैकजीवितघरौ निःशेषभूमिस्पृशां पुण्यौधेन सरस्वतीसुरगुरू स्वाङ्गकरूपौ दधत् । यः स्याद्वादमसाधयन् निजवपुर्दृष्टान्ततः सोऽस्तु मे सद्बुद्ध्यम्बुनिधिप्रबोधविधये श्रीहेमचन्द्रः प्रभुः॥२॥ ये हेमचन्द्रं मुनिमेतदुक्तनन्थार्थसेवामिषतः श्रयन्ते। संप्राप्य ते गौरवमुज्ज्वलानां पदं कलानामुचितं भवन्ति ॥३॥
टीकाकारका मंगलाचरण अर्थ-जो अनन्त वस्तुओंको जानते हैं, देवों द्वारा पूजे जाते हैं, जिनके वचन दुर्नयके कोलाहलसे लुप्त नहीं होते, तथा जिन्होंने रागद्वेष प्रधान शत्रुओंकी सभाको क्षण-भरमें परास्त कर दिया है, ऐसे वीरप्रभु मेरी बुद्धि निर्मल करें ॥१॥
___समस्त मध्यलोकवर्ती प्राणियोंके पुण्य-प्रतापसे, असीम प्रतिभारूप प्राणोंके धारक, सरस्वती और बहस्पतिको अपने शरीररूपमें धारण करते हए. जिन्होंने अपने शरीरके दृष्टान्तसे ही स्याद्वादके सिद्धान्तको सिद्ध कर दिखाया है, जिन्होंने एक ही शरीरमें परस्पर भिन्न सरस्वती और सुरगुरुके धारण करनेसे, एक ही पदार्थको परस्पर भिन्न अनेक धर्मोंका धारक सूचित किया है-ऐसे हेमचन्द्रप्रभु मेरे सद्बुद्धिरूपी समुद्रको अभिवृद्धि करें॥२॥
जो लोग इस ग्रन्थके अध्ययनके बहाने हेमचन्द्रमुनिका आश्रय लेते हैं, वे उज्ज्वल कलाओंके गौरवको प्राप्त करने योग्य पदको प्राप्त करते हैं ॥३॥