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इन आप्त पुरुषका परम सत्संग तथा उत्तम बोध प्रबल उपकारक बने हैं ।" "संजीवनी औषध समान मृतको जीवित करे ऐसे उनके प्रबल पुरुषार्थं जागृत करनेवाले वचनोंका माहात्म्य विशेष विशेष भास्यमान होने के साथ ठेठ मोक्षमें ले जाय ऐसी सम्यक् समझ (दर्शन) उस पुरुष और उसके बोधकी प्रतीतिसे प्राप्त होती है; वे इस दुधम कलिकालमें आश्चर्यकारी अवलंबन है।" "परम माहात्म्यवंत सद्गुरु श्रीमद् राजचन्द्रदेवके वचनों में तल्लीनता, श्रद्धा जिसे प्राप्त हुई है, या होगी उसका महद् भाग्य है । वह भव्य जीव अल्पकालमें मोक्ष पाने योग्य है ।"
उनकी स्मृतिमें शास्त्रमालाको स्थापना
सं० १९५६ में सत्श्रुतके प्रचार हेतु बम्बई में श्रीमद्जीने परमश्रुतप्रभावकमण्डलकी स्थापना की थी । उसीके तत्त्वावधानमें उनकी स्मृतिस्वरूप श्रीरायचन्द्र जैन शास्त्रमा लाकी स्थापना हुई। जिसकी ओरसे अब तक समयसार प्रवचनसार, गोम्मटसार, स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा, परमात्मप्रकाश और योगसार, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, इष्टोपदेश, प्रशमरतिप्रकरण न्यायावतार, स्याद्वादमंजरी, अष्टप्राभृत, सभाप्यतस्यार्थाधिगमसूत्र, ज्ञानार्णव, बृहद्रव्यसंग्रह, पंचास्तिकाय, लब्धिसार-क्षपणासार, द्रव्यानुयोगतर्कणा, सप्तभंगीतरंगिणी, उपदेशछाया और आत्मसिद्धि, भावना-बोध, श्रीमद्राजचन्द्र आदि ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। वर्तमान में संस्थाके प्रकाशनका सब काम अगाससे ही होता है। विक्रयकेन्द्र बम्बई में भी पूर्वस्थानपर ही है। श्रीमद्राजचन्द्र आश्रम, अगास से गुजराती भाषामें अन्य भी उपयोगी ग्रन्थ छपे हैं ।
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वर्तमान में निम्नलिखित स्थानोंपर श्रीमद्राजचन्द्र आश्रम व मन्दिर आदि संस्थाएं स्थापित हैं, जहाँ पर मुमुक्षुबन्धु मिलकर आत्मकल्याणार्थ वीतराग-तत्त्वज्ञानका लाभ उठाते हैं। वे स्थान है—अगास, बवाणिया, राजकोट, बड़वा, खंभात, काविठा, सीमरडा, भादरण, नार, सुणाव, नरोड़ा, सडोदरा, धामण, अहमदावाद, ईडर, सुरेन्द्रनगर, वसो, वटामण, उत्तरसंडा, बोरसद, आहोर (राज०), हम्पी (दक्षिण भारत), इन्दौर ( म०प्र०); बम्बई - घोटकोपर, देवलाली तथा मोम्बासा ( आफ्रिका ) ।
अन्तमें बीतराग-विज्ञानके निधान तीर्थंकरादि महापुरुषों द्वारा उपदिष्ट सर्वोपरि आत्मधर्मका अविरल प्रवाह जन-जनके अन्तर में प्रवाहित हो, यही भावना है।
श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम स्टे० अगास, पो० बोरीया वाया : आणंद (गुजरात )
- बाबूलाल सिद्धसेन जैन
१. 'श्रीमद्गुरुप्रसाद' पृ० २, ३
२. श्रीमद्जीद्वारा निर्देशित सत्श्रुतरूप ग्रन्थोंकी सूची के लिये देखिए 'श्रीमद्राजचन्द्र' - ग्रन्थ ( गुज ० ) उपदेशनोंध क्र० १५ ।