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________________ स्याद्वादमञ्जरी (परिशिष्ट) ३०५ धम्मपदमें तैंतीस अध्ययनों में संग्रह किया था। धम्मपदका चीनी अनुवाद मिलता है। घर्मत्राताको पंचवस्तुविभाषाशास्त्र संयुक्ताभिधर्महृदयशास्त्र, अवदानसूत्र और धर्मत्रातध्यानसूत्र इन ग्रंथोंका प्रणेता कहा जाता है। घोष ( १५० ई.)-लक्षण-परिणामवादी घोषका सिद्धांत है कि जिस प्रकार किसी एक स्त्रीमें आसक्ति करनेवाला पुरुष दूसरी स्त्रियोंमें आसक्तिको नहीं छोड़ देता, उसी तरह भूत धर्म भूत धर्मसे संबद्ध होता हुआ वर्तमान और भविष्य धर्मोंसे संबंध नहीं छोड़ता, तथा वर्तमान धर्म वर्तमान धर्मसे संबद्ध होता हुआ भूत और भविष्य धर्मसे संबंध नहीं छोड़ता। घोषने अभिधर्मामृतशास्त्रको रचना की है। इस ग्रंथका चीनी अनुवाद उपलब्ध है। बुद्धदेव (२००ई )-अपेक्षा-परिणामवादी बुद्धदेवका कहना है कि जैसे एक ही स्त्री पुत्री, माता आदि कही जाती है, उसी तरह एक ही धर्ममें नाना अपेक्षाओंसे भूत, भविष्य और वर्तमानका व्यवहार होता है । जिसके केवल पूर्व पर्याय है, उसे भविष्य, जिसके केवल उत्तर पर्याय है, उसे भूत, और जिसने पूर्व पर्यायको प्राप्त कर लिया है और जो उत्तर पर्यायको धारण करनेवाला है, उसे वर्तमान कहते हैं। वसुमित्र (१०० ई० )-अवस्था-परिणामवादी वसुमित्रका कहना है कि धर्म भिन्न-भिन्न अवस्थाओंकी अपेक्षा ही भूत, भविष्य और वर्तमान कहा जाता है। वास्तवमें द्रव्यमें परिवर्तन नहीं होता। इसलिये जिस समय किसी धर्ममें कार्य करनेकी शक्ति बन्द हो जाती है, उस समय उसे भूत, जिस समय धर्ममें क्रिया होती रहती है, उस समय वर्तमान, और जिस समय धर्म में क्रिया होनेवाली हो, उस समय उसे भविष्य कहते हैं। वसुमित्र कनिष्कको परिषद्में उपस्थित होनेवाले पाँचसौ अर्हतोंमेंसे थे । वसुमित्रने अभिधर्मप्रकरणपाद, अभिधर्मधातुकायपाद, अष्टादशनिकायशास्त्र, तथा आर्यवसुमित्रबोधिसत्त्वसंगीतशास्त्र ग्रंथोंकी रचना की है। धर्मत्राता, घोष, बुद्धदेव और वसुमित्रके सिद्धांतोंका प्रतिपादन और खण्डन तत्त्वसंग्रहमें त्रैकाल्यपरीक्षा नामक प्रकरणमें किया गया है। वसुबंधुने अभिधर्मकोश (५-२४-६) में आदिके तीन विद्वानोंके मतोंका खण्डन करके वसुमित्रके अवस्था-परिणामको स्वीकार किया है। __ वैभाषिक वैभाषिक लोग अभिधर्मको टीका विभाषाको सबसे अधिक महत्त्व देनेके कारण वैभाषिक कहे जाते हैं। ये लोग भूत, भविष्य और वर्तमानको अस्तिरूपसे मानते हैं। इनके मतमें ज्ञान और ज्ञेय दोनों वास्तविक हैं। वैभाषिक लोग प्रत्यक्ष प्रमाणसे बाह्य पदार्थोंका अस्तित्व मानते हैं। "इनके मतमें प्रत्येक १. तत्त्वसंग्रह, अंग्रेजी भूमिका, पृ० ५६ । २. धर्मोऽध्वसु वर्तमानोऽतीतोऽतीतलक्षणयुक्तोऽनागतप्रत्युत्पन्नाभ्यां लक्षणाभ्यां अवियुक्तः । यथा पुरुष एकास्यां स्त्रियां रक्तः शेषास्वविरक्त एवमनागतप्रत्युत्पन्नावपि वाच्ये । तत्त्वसंग्रहपंजिका । ३. धर्मोऽध्वसु वर्तमानः पूर्वापरमपेक्ष्यान्योन्य उच्यते इति । यथैका स्त्री माता चोच्यते दुहिता चेति । त० संग्रहपंजिका। ४. धर्मोऽध्वसु वर्तमानोऽवस्थामवस्थां प्राप्यान्योऽन्यो निर्दिश्यतेऽवस्थान्तरतो, न द्रव्यतः, द्रव्यस्य त्रिष्वपि कालेष्वभिन्नत्वात् । तत्त्वसंग्रहपंजिका । ५. देखिये प्रोफेसर शेर्बास्कोका The Central Conception of Buddhism, परिशिष्ट १, पृ.७६-९१।
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
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