SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्य. यो. व्य. श्लोक २४ ] स्याद्वादमञ्जरी २२७ शंका-पररूपसे वस्तुका जो नास्तित्व धर्म है, उसका अर्थ वस्तुमें उस वस्तुसे भिन्न वस्तुके स्वरूपका अभाव ही है। घटमें पटके स्वरूपका अभाव होनेपर 'घट नहीं है', ऐसा नहीं कहा जा सकता; क्योंकि भूतलमें घटका अभाव होनेपर 'भूतलमें घट नहीं है' इस वाक्यकी जिस प्रकार प्रवृत्ति होती है, उसी प्रकार घटमें पटके स्वरूपका अभाव होनेपर 'घटमें पट नहीं है', ऐसा ही कहना उचित है समाधान-यह कथन ठीक नहीं है, क्योंकि वह विचारको सह्य नहीं है। घट आदिमें जो घट आदिसे भिन्न पटके स्वरूपका अभाव होता है, वह पट आदिका धर्म होता है या घटका धर्म होता है ? घट आदिमें पटके स्वरूपका अभाव पटका धर्म नहीं हो सकता; क्योंकि उसके पटका धर्म होनेसे व्याघात होता है-विरोध उपस्थित हो जाता है। पटके स्वरूपका अभाव पटमें नहीं होता; क्योंकि पटके स्वरूपका पटमें अभाव होनेसे पटका अभाव हो जानेका प्रसंग उपस्थित हो जाता है। पदार्थका अपना धर्म उसी पदार्थमें नहीं होता, ऐसा नहीं कहना चाहिये । क्योंकि उस धर्मका, पदार्थका अपना धर्म होनेमें विरोध आता है और घटका पटके धर्मका आधार होना घटित नहीं होता । क्योंकि पटके धर्मका आधार घट होता है, ऐसा माननेसे घटके आतान-वितान-आकारका आधार हो जानेका प्रसंग उपस्थित हो जाता है। पटके स्वरूपका अभाव-नास्तित्व-घटका धर्म है, इस पक्षको स्वीकार करनेसे विवादको ही समाप्ति हो जाती है। क्योंकि पदार्थके साथ अस्तित्व धर्मका तादात्म्यसंबंध होनेसे जिस प्रकार पदार्थ अस्तित्वधर्मात्मक होता है. उसी प्रकार पदार्थके साथ ( पररूपसे ) नास्तित्व धर्मका तादात्म्यसंबंध होनेसे पदार्थ नास्तित्वधर्मात्मक होता है । इस प्रकार 'घट नहीं है' यह प्रयोग ठीक है। यदि 'घट नहीं है' यह प्रयोग ठीक न हो तो जिस प्रकार पदार्थका नास्तित्व धर्मके साथ तादात्म्यसंबंध होनेपर भी पदार्थ असत्-नास्तिरूप-नहीं हो सकता, उसी प्रकार उसी पदार्थका अस्तित्व धर्मके साथ तादात्म्यसंबंध होनेपर भी वह पदार्थ सत्-अस्तित्वरूपनहीं हो सकेगा। शंका-घटमें पटके रूपके अभावका अर्थ है-घटमेंरहने वाले पटरूपके अभावका प्रतियोगित्व । (जिसका अभाव बताया जाता है वह प्रतियोगी कहा जाता है। घटके अभावका प्रतियोगी घट होता है।) वह पटके रूपके-धर्मके-अभावका प्रतियोगी पटका रूप या धर्म है। उदाहरण-'भूतलमें घट नहीं है। इस वाक्यमें भूतलमें जो घटका नास्तित्व है, वह भूतलमें होनेवाले घटके अभावका प्रतियोगित्व ही है। वह घटके रूपके-धर्मके-अभावका प्रतियोगी घटका रूप या धर्म हैं। समाधान-यह कथन ठीक नहीं है । क्योंकि इस तरह भी जैसे घटके अभावका भूतलका धर्म होनेमें विरोध उपस्थित नहीं होता, वैसे ही पटके रूपके अभावका घटका धर्म होनेमें विरोध उपस्थित नहीं होता। इस प्रकार घटका भावाभावात्मकत्वअस्तित्वनास्तित्वधर्मात्मकत्व या विधिप्रतिषेधात्मकत्व-सिद्ध हो जाता है। क्योंकि कथंचित्तादात्म्यरूप संबंधसे जिसका पदार्थके साथ संबंध होता है वही पदार्थका अपना धर्म होता है। शंका-इस प्रकार घटमें स्वरूपसे भावधर्मके-अस्तित्वधर्मके-और पररूपाभावसे अभाव धर्मकेनास्तित्व धर्मके-सद्भावकी सिद्धि होनेपर भी 'घट है, पट नहीं है। ऐसा ही कहना चाहिये। क्योंकि पटके अभावका प्रतिपादन करनेवाले वाक्यकी उक्त प्रकारसे-'पट नहीं है' इस प्रकारसे-प्रवृत्ति होती है। जिस प्रकार 'भूतलमें घट नहीं है' इस प्रकार घटके अभावका प्रतिपादन करनेवाला वाक्य प्रवृत्त होता है, 'भूतल नहीं है। इस प्रकारका वाक्य प्रवृत्त नहीं होता, उसी प्रकार प्रकृत विषयमें घटमें पटका अर्थात् पटके स्वरूपका अभाव घटका धर्म होनेपर भी, 'पट नहीं है। इस प्रकारके वाक्यका प्रयोग करना उचित है। क्योंकि अभावका प्रतिपादन करनेवाले वाक्यमें अभावके प्रतियोगीका प्राधान्य होता है (घटमें पटके अभावका प्रतिपादन करनेवाले वाक्यमें पटरूप प्रतियोगीका प्राधान्य होता है। जिस प्रकार घटरूप परिणामकी उत्पत्तिके पूर्वकालमें जो घटका अभाव होता है, वह अभाव कपालरूप होनेपर भी कपालकी अवस्थामें 'घट उत्पन्न होगा' इस प्रकारके ही घटकी उत्पत्ति कालके पूर्वकालमें होनेवाले घटके अभावका
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy