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अन्य. यो. व्य. श्लोक २३ ]
स्याद्वादमञ्जरी
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जितने गुण होते हैं उतने ही उसके भेद होते हैं । एक गुणके आश्रयभूत पदार्थका भेद दूसरे गुणके आश्रयभूत पदार्थके भेदसे पर्यायार्थिक नयको दृष्टिले भिन्न होता है । पदार्थका भेद और तदाश्रित गुणमें तादात्म्य संबध होता है । पदार्थका भेद और तदाधित गुण दोनों संबंधी है । पदार्थ के जितने भेद होते हैं, और तदाथित जितने गुण होते हैं, उतने ही संबंधी होते हैं । पदार्थके भेदोंमें परस्पर भिन्नत्व होनेसे और तदाश्रित गुणोंमें व्यवहार नयकी दृष्टिसे भेद होनेसे, एक सम्वन्धियुगलसे अन्य संबंधियुगलका भेद होता है। संबंधियुगलोंमें परस्पर भेद होनेसे उनमें होनेवाले संवंधोंमे भी भेद होता है। संबंधियोंमें भेद होनेसे संबंधोमें भेद होनेके कारण, अनेक संबंधियोंके होनेसे, एक पदार्थमें एक ही संबंधका सद्भाव घटित नहीं होता-अनेक संबंधोंका सद्भाव घटित होनेके कारण एक पदार्थ के आश्रित अनेक गुणोंमें अभेदकी सिद्धि घटित नहीं होती। आम्रफलरूप पदार्थके एक होनेपर भी, जिसके साथ आम्लरसगुणका तादात्म्य होता है, वह आम्ररसकी अवस्था और आम्लरसगुण तथा जिसके साथ मधुररस गुणका तादात्म्य होता है वह आम्रफलकी अवस्था और मधुररसगुण-इन दोनोंमें परस्पर भिन्नता होती है। इन संबंधियुगलोंमें परस्पर भिन्नता होनेसे उन युगलोंमें होनेवाले तादात्म्य स्वरूप संबंधोंमें भिन्नता होती है। अत: अनेक संबंधियोंके कारण एक आम्रफलमें होनेवाले संबंधोंका एकत्व सिद्ध न होनेरो, आम्रफलके आम्लरसगुण और मधुररसगुणमें अभेदकी सिद्धि नहीं हो सकती। यहाँ संबंधोंकी भिन्नता पर्यायाथिक नयकी दृष्टिसे सिद्ध की गई है। (५) गुणोंको अपनी विशेपतासे-अपने विशेष स्वरूपसे-अपने आश्रयभूत पदार्थको युक्त करना हो पदार्थका गुणकृत उपकार है । एक पदार्थमें अनेक-अनंत-गुण होते हैं। प्रत्येक गुण अपने आश्रयभूत पदार्थको अपने स्वरूपसे युक्त बनाकर उस पदार्थका उपकार करता है । प्रत्येक गुणका स्वरूप निश्चित होनेसे उस गुणके द्वारा किया जानेवाला उपकार भी निश्चित स्वरूप वाला होता है। भिन्न-भिन्न गुणोंके द्वारा किये जाने वाले उपकारोंके निश्चित स्वरूपवाले होनेसे, अन्योन्यव्यावर्तक होनेके कारण परस्पर भिन्न होनेसे तथा अनेक होनेके कारण, पदार्थका उपकार करनेवाले गुणोंमें भेदकी सिद्धि होती है। जब कच्चे आमको आम्लरसगण अपने स्वरूपसे युक्त करता है-व्याप्त करता है-तव आम्रफल क्रमसे खट्टा और मीठा कहा जाता है। आम्लरसगुण कृत उपकार और मधुररसगुण कृत उपकारमें परस्पर भेद होता है। यदि उपकारोंमें भेद न हुआ तो 'खट्टा आम' और 'मीठा आम'-आमकी ये अवस्थायें ही न रहेंगी। अतः विभिन्न गुणकृत उपकारोंमें भेद होनेसे एक पदार्थके गुणोंमें भेदकी सिद्धि हो जाती है। अथवा यदि पदार्थके सभी गुणोंमें भेद न होता तो एक ही इन्द्रियके सभी गुणोंका ग्रहण हो जाता। यदि आम्रफलके स्पर्श, रस, गंध और वर्णमें सर्वथा अभेद होता तो नेत्र इन्द्रिय द्वारा सभी गुणोंका युगपत् ग्रहण हो जाता। जब नेत्र इन्द्रिय द्वारा सभी गुणोंका युगपत् ग्रहण नहीं होता और जब प्रत्येक गुणका उपकार भिन्न है, तब आम्रफलके सभी गुण पर्यायार्थिक नयकी दृष्टिसे, अन्योन्य-भिन्न हैं। (६) गुणोंके भेदसे ही पदार्थोमें भेद पाया जाता है। क्योंकि गुण ही पदार्थोकी अन्योन्य-भिन्नताका कारण होते हैं । अतः गुणीकी-अनेक गुणाश्रित पदार्थकीद्रव्यार्थिक नयकी दृष्टिसे, पदार्थ जितने गुणोंका आश्रय होता है, उतने ही उसके भेद हो जाते हैं । आम्रफलके सभी प्रदेशोंके आम्लरसगुणसे युक्त होनेसे कच्चा आम, पके हुए आम्रफलसे भिन्न होता है। क्योंकि पके हुए आम्रफलके सभी प्रदेश मधुररसगुणसे युक्त होते हैं। आम्लरसगुण और मधुररसगुणके परस्पर भिन्न होनेसे उनके आश्रयभूत आम्रफलमें, उनके द्रव्यार्थिक नयकी दृष्टि से एक होनेपर भी पर्यायाथिक नयकी दृष्टिसे उनमें विभिन्नता होती है । अतः गुणोंके भेदके कारण द्रव्याथिक नयकी दृष्टिसे पदार्थका एकत्व निर्वाध होनेपर भी, पर्यायाथिक नयकी दृष्टि से उस पदार्थ भेदोंकी-अनेक रूपत्वकी-सिद्धि होती है। अतः पदार्थके जितने गुण होते हैं, उतने उसके भेद होनेसे, उनके भेदोंगे गुणोंमें भी भेदकी सिद्धि हो जाने से, एक द्रव्याश्रित गुणोंमें अभेदको सिद्धि नहीं होती। यदि गुणोंके भेद होनेपर गुणिदेशमें अभेद ही स्वीकार किया जाय तो ज्ञानगुण और स्पर्श आदि गुणोंके परस्पर भिन्न होनेपर भी तदाश्रयभूत पदार्थोमें अभेदकी सिद्धि हो जायेगी--अर्थात जोव और पुदगल द्रव्यमें एक द्रव्यत्वको सिद्धिका प्रसंग उपस्थित हो जायेगा। किन्तु