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श्रीमद्राजचन्द्र जैनशास्त्रमालायां [ अन्य. यो. व्य. श्लोक २३
परिणत नहीं हो सकेगा । पदार्थ में प्रतिसमय अर्थपर्यायें जन्म लेती रहती हैं, अतः प्रतिक्षण पदार्थको भिन्नता घटित होती रहती है । इस अर्थ पर्यायके भी प्रतिक्षण भिन्न रूप होनेसे अर्थंपर्याययुक्त पदार्थकी प्रतिक्षण भिन्नता सिद्ध होती है । एक समय में एक ही अर्थपर्याय होती है— अनेक अर्थपर्यायें नहीं । पदार्थ की अर्थ पर्याय के कारण व्यक्त होनेवाली भिन्नता, उन अथपर्यायोंके काल भिन्न-भिन्न होनेसे होती है । प्रत्येक समय में होनेवाली पदार्थको भिन्नता के कारण अर्थपर्यायोंके कालोंकी भिन्नता होनेसे, एक पदार्थ में, एक समय में, अनेकविध गुणोंके अस्तित्वका होना असंभव है । ऐसी अवस्था में भी यदि एक पदार्थ में, एक समय में, अनेकविध गुणोंका होना संभव माना तो पदार्थ में एक समय में जितने गुण होंगे उतने ही प्रकार एक पदार्थ के एक समय में होंगे । अतः पदार्थ की विविधता कालभेद - निमित्तक होनेसे, कालकी दृष्टिसे द्रव्याश्रित अनेक गुणोंमें अभेद सिद्ध नहीं होता, अपितु भेद ही सिद्ध होता है । ( २ ) एक पदार्थ के आश्रित अनेक गुणोंका द्रव्यार्थिक नयकी दृष्टिसे एक 'पदार्थका आश्रय करनेका स्वरूप एक होनेसे, उन सभी गुणोंमें अभेद होता है, फिर भी द्रव्यार्थिक नयके गोण और पर्यायार्थिक नयके मुख्य होनेपर एक पदार्थ के आश्रित अनेक गुणोंमें अभेदकी सिद्धि नहीं होती, किन्तु भेदकी हो सिद्धि होती है। क्योंकि अनेक गुणोंमेंसे प्रत्येक गुणका स्वरूप स्वभिन्न अन्य
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स्वरूपसे भिन्न होता है, और उन गुणोंके स्वरूपमें भेद नहीं होता - ऐसा माननेसे उनकी परस्पर भिन्नताका अभाव हो जाता है । स्पर्श, रस, गंध और वर्ण - ये चार गुण पुद्गलके आश्रित हैं । ये सभी गुण द्रव्यार्थिक नकी दृष्टिसे परस्पर भिन्न नहीं होते - अपितु अभिन्न होते हैं। क्योंकि पुद्गलका आश्रय ग्रहण करनेका उनका एक ही स्वभाव होता है । द्रव्यार्थिक नयकी गोणता और पर्यायार्थिक नयकी प्रधानता होनेपर उन गुणोंमें अभेदको सिद्धि नहीं होती । क्योंकि चारों गुणोंका एक स्वभाव नहीं होता - वह भिन्न होता है । यदि इन चारों गुणों का स्वभाव एक होता तो उनमें होनेवाले भेदका अभाव जाता और उनकी चारकी संख्या न रह पाती । अतः पर्यायार्थिक नयकी प्रधानता होनेपर एक द्रव्याश्रित अनेक गुणोंमें स्वरूपकी दृष्टिसे अभेद सिद्ध नहीं होता । ( ३ ) अक्रमभावि पर्याय रूप अनेक गुणोंके आश्रयभूत एक पदार्थ की दृष्टिसे भी उन अनेक गुणों में अभेदकी सिद्धि नहीं होती। क्योंकि गुणोंकी अनेकता के कारण उनके आश्रयभूत पदार्थका भी अनेकरूपत्व सिद्ध हो जाता है । गुणोंमें भेद होनेसे उनके आश्रयभूत गुणी का -- पदार्थका भी भेद हो जाता है । एक समय में एक ही गुणरूप अक्रमभावी पर्याय होती है । एक पदार्थ में अनेक गुण होनेसे अक्रमभावी पर्यायें भी अनेक होती हैं । अक्रमभावी पर्यायोंकी अनेकताके कारण गुणाश्रयभूत पदार्थकी भी अनेकता सिद्ध हो जाती है । जब गुणाश्रयभूत पदार्थकी अनेकता पर्यायार्थिक नयकी दृष्टिसे सिद्ध होती है, तव पदार्थ की दृष्टिसे पदार्थ के गुणोंमें अभेदकी सिद्धि होना असंभव है । यदि गुणाश्रयभूत पदार्थ की अनेकता नहीं होती — ऐसा स्वीकार करें तो पदार्थके अनेक गुणोंका आश्रय होनेमें विरोध उपस्थित होता है । यद्यपि आम्लरस गुणयुक्त कच्चे आममें और मधुररस युक्त पके हुए आममें एकत्व प्रत्यभिज्ञानसे एकत्वकी सिद्धि होती है, अथवा द्रव्यार्थिक नयकी दृष्टिसे उभयावस्थापन्न आमका एकत्व सिद्ध हो जाता है, फिर भी आम्लरस गुणयुक्त आम्रफलसे मधुररस गुणयुक्त पके हुए आम्रफलका पर्यायार्थिक नयकी दृष्टिसे भिन्नत्व ही सिद्ध होता है । यदि भिन्न-भिन्न रसगुणोंसे युक्त आम्रफलमें कथंचित् भी भेद नहीं होता - सर्वथा अभेद ही होता है, ऐसा स्वीकार किया जाये तो कच्चे आम्रफलमें और पके हुए आम्रफलमें सर्वथा अभेदको सिद्धि हो जानेसे, आम्लरस गुणसे मधुररस गुणके भेदका अभाव सिद्ध हो जायेगा, तथा आम्रफलका नाना गुणाश्रयत्व भी न रहेगा और यह आम कच्चा है और यह पका हुआ है, यह व्यवहार न बन सकेगा । अतः रसगुणके भेदके कारण उन भिन्न रसोंके आश्रय में भी भिन्नता होती है - यह स्वीकार करना पड़ेगा । अतः अर्थकी दृष्टिसे भी नाना गुणाश्रयभूत पदार्थका द्रव्यार्थिक नयकी दृष्टिसे एकत्व सिद्ध हो जानेपर भी, पर्यांयार्थिक नयको दृष्टिसे उस पदार्थका अनेकत्व सिद्ध हो जाता है, तो अनेक गुणोंमें अर्थकी दृष्टिसे अभेदकी सिद्धि नहीं हो सकती । ( ४ ) प्रत्येक पदार्थ अनेक या अनंत गुणोंका आश्रय होता है । द्रव्यार्थिक नयी दृष्टिसे यद्यपि पदार्थका एकत्व होता है, फिर भी पर्यायार्थिक नयको दृष्टिसे पदार्थाश्रित