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ग्रंथ और ग्रंथकार
(३ ) सत्कार्यवाद माननेवाले सांख्य लोगोंका आकाश आदिका पांच तन्मात्राओंसे उत्पत्ति मानना असंगत है।
(४) वंध पुरुषके ही मानना चाहिये, प्रकृतिके नहीं।। (५) वाक्, पाणि आदिको पृथक् इन्द्रिय नहीं कह सकते, इसलिये पांच ही इन्द्रियां माननी चाहिये। (६ ) केवल ज्ञानमात्रसे मोक्ष नहीं हो सकता।
श्लोक १६-१९ इन श्लोकोंमें बौद्धोंके निम्न मुख्य सिद्धांतोंपर विचार किया गया है(१) प्रमाण और प्रमाणके फलको सर्वथा अभिन्न न मानकर कथंचित् भिन्नाभिन्न मानना चाहिये ।
(२) सम्पूर्ण पदार्थों को एकान्त रूपसे क्षणध्वंसी न मानकर उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य सहित स्वीकार करना चाहिये।
(३) पदार्थोके ज्ञानमें तदुत्पत्ति और तदाकारताको कारण न मानकर क्षयोपशम रूप योग्यताको ही कारण मानना चाहिये।
(४) विज्ञानवादी बौद्धोंका विज्ञानाद्वैत मानना ठीक नहीं है।
(५)प्रमाता, प्रमेय आदि प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे सिद्ध होते हैं, इसलिये माध्यमिक वौद्धोंका शून्यवाद युक्तिसंगत नहीं है।
(६) बौद्धोंके क्षणभंगवादमें अनेक दोष आते हैं, अतः क्षणभंगवादका सिद्धांत दोषपूर्ण है।
(७) क्षणभंगवादको सिद्धिके लिये नाना क्षणोंकी परम्परारूप वासना अथवा संतानको मानना भी ठीक नहीं। तथा
(क ) नैयायिकोंके प्रमाण और प्रमितिमें एकान्त-भेद नहीं बन सकता । (ख ) आत्माकी सिद्धि । (ग) सर्वज्ञकी सिद्धि ।
श्लोक २० इस श्लोकमें चार्वाक मतके सिद्धांतोंका खण्डन किया गया है।
श्लोक २०-२९ इन श्लोकोंमें स्वपक्षका समर्थन करते हुए स्याद्वादको सिद्धि की गई है। इन श्लोकोंमें निम्न सिद्धां. तोंका प्रतिपादन किया गया है
(१) प्रत्येक वस्तु उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यसे युक्त है। द्रव्यकी अपेक्षा वस्तुमें ध्रौव्य और पर्यायकी अपेक्षा सदा उत्पाद और व्यय होता है। उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य परस्पर सापेक्ष है।
(२) आत्मा, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि सम्पूर्ण द्रव्योंमें नाना अपेक्षाओंसे नाना धर्म रहते हैं, अतएव प्रत्येक वस्तुको अनन्तधर्मात्मक मानना चाहिये। जो वस्तु अनन्तधर्मात्मक नहीं होती, वह वस्तु सत् भी नहीं होती।
(३) प्रमाणवाक्य और नयवाक्यसे वस्तुमें अनन्त धर्मों की सिद्धि होती है। प्रमाणवाक्यको सकलादेश और नयवाक्यको विकलादेश कहते हैं। पदार्थके धर्मोका काल, आत्मरूप, अर्थ, संबंध, उपकार गुणिदेश, संसर्ग और शब्दकी अपेक्षा अभेदरूप कथन करना सकलादेश; तथा काल, आत्मरूप आदिको भेदविवक्षासे पदार्थोके धर्मोंका प्रतिपादन करना विकलादेश है। स्यादस्ति, स्यान्नास्ति, स्यादवक्तव्य, स्यादस्तिअवक्तव्य,