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अन्य.यो. व्य. श्लोक १६] स्याद्वादमञ्जरी
१४९ अथेदृश एव स्वभावस्तस्य हेतुतो जातो यत्कियन्तमपि कालं स्थित्वा विनश्यति । एवं तर्हि मुद्गरादिसंनिधानेऽपि एप एव तस्य स्वभावः इति पुनरप्येतेन तावन्तमेव कालं स्थातव्यम् इति नैव विनश्येदिति । सोऽयं “अदित्सोर्वणिजः प्रतिदिनं पत्र लिखितश्वस्तनदिनभणनन्यायः । तस्मात् क्षणद्वयस्थायित्वेनाप्युत्पत्तौ प्रथमक्षणवद् द्वितीयेऽपि क्षणे क्षणद्वयस्थायित्वात् पुनरपरक्षणद्वयमवतिष्ठेत । एवं तृतीयेऽपि क्षणे तत्स्वभावत्वान्नैव विनश्येदिति ।।
स्यादेतत् । स्थावरमेव तत् स्वहेतोर्जातम् , परं वलेन विरोधकेन मुद्गरादिना विनाश्यत इति । तदसत् । कथं पुनरेतद्घटिप्यते । न च तद् विनश्यति स्थावरत्वात्, विनाशश्च तस्य विरोधिना वलेन क्रियते इति । न ह्येतत्सम्भवति जीवति देवदत्तो मरणं चास्य भवतीति । अथ विनश्यति तर्हि कथमविनश्वरं तद् वस्तु स्वहेतोर्जातमिति । न हि म्रियते च अमरणधर्मा चेति युज्यते वक्तुम् । तस्मादविनश्वरत्वे कदाचिदपि नाशायोगात् दृष्टत्वाच्च नाशस्य नश्वरमेव तद्वस्तु स्वहेतोरुपजातमङ्गीकर्तव्यम् । तस्मादुत्पन्नमात्रमेव विनश्यति । तथा च क्षणक्षयित्वं सिद्धं भवति ॥
पदार्थोंका किसी भी कारणसे नाश नहीं हो सकता। इसलिये प्रत्येक पदार्थ क्षण-क्षणमें नष्ट होता है। शंका-यदि क्षण-क्षणमें नाशको प्राप्त होनेवाले परमाणु ही वास्तविक हैं, तो घट, पट आदि स्थूल पदार्थोंका ज्ञान नहीं हो सकता । उत्तर-वास्तवमें स्थूल पदार्थोंका ज्ञान स्वप्न-ज्ञान अथवा आकाशमें केश-ज्ञानकी तरह निविपय है । अनादि कालकी वासनाके कारण ही स्थूल पदार्थों का प्रतिभास होता है। शंका-यदि सम्पूर्ण पदार्थ क्षण-क्षणमें नष्ट होनेवाले हैं, तो पदार्थोंका प्रत्यभिज्ञान नहीं हो सकता। उत्तर-जिस प्रकार दीपककी लौमें परस्पर समानता रखनेवाले पहले और दूसरे क्षणोंमें, पहले क्षणके नष्ट होनेके समय ही पहले क्षणके समान दूसरे क्षणके उत्पन्न होनेसे यह वही दीपक हैं, यह ज्ञान होता है, उसी प्रकार समान आकारकी ज्ञान-परम्परासे पूर्व क्षणोंके अत्यन्त नष्ट हो जानेपर भी पदार्थों में प्रत्यभिज्ञान होता है।
प्रतिवादी-अपनी उत्पत्तिके कारणभूत सहायकोंसे उत्पन्न हुए ( कार्यरूप) पदार्थका कुछ समय तक ठहर कर नष्ट हो जाना, यह प्रत्येक पदार्थका स्वभाव है। बौद्ध-यदि पदार्थका स्वभाव क्षणक्षणमें नाशमान न माना जाय, तो घड़ेके साथ मुद्गरका संयोग होनेपर भी घड़ा नष्ट नहीं होना चाहिये, क्योंकि मुद्गरका संयोग होनेपर भी घड़ेका नाश नहीं होनेका स्वभाव मौजूद है। अतएव जिस प्रकार कोई कर्जदार साहकारके कर्जको न चुकानेकी इच्छासे कर्ज चुका देनेका प्रतिदिन वायदा करनेपर भी कभी अपने कर्जको नहीं चुका पाता, उसी तरह मुद्गरका संयोग होनेपर भी प्रत्येक क्षणमें नष्ट न होनेवाला घट दूसरे, तीसरे आदि क्षणमें नष्ट न हो कर सर्वदा नित्य ही रहना चाहिये। अतएव पदार्थोंका स्वभाव क्षण-क्षणमें नष्ट होनेका है।
प्रतिवादी-प्रत्येक पदार्थ अपने उत्पत्तिके कारणोंसे स्थिर रहनेके लिये ही उत्पन्न होता है, बादमें अपने बलवान विरोधी मुद्गर आदिते नष्ट हो जाता है। बौद्ध-यह ठीक नहीं। क्योंकि यदि पदार्थका स्वभाव नष्ट नहीं होनेका है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि पदार्थ अपने बलवान विरोधीसे नष्ट हो जाता है, क्योंकि जिस पदार्थका स्वभाव नष्ट होना नहीं है, वह पदार्थ नष्ट नहीं हो सकता । अतएव जिस प्रकार देवदत्तके जीते हुए उसको मरा हुआ नहीं कह सकते, वैसे ही यदि पदार्थ नष्ट हो जाता है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि पदार्थ अपने उत्पत्तिके कारणोंसे स्थिर रहनेके लिये उत्पन्न हुआ था। अतएव जैसे नाशमान देवदत्तको अनाशमान नहीं कहा जा सकता, वैसे ही नष्ट होनेवाले पदार्थको अविनश्वर नहीं कह सकते । तथा, पदार्थ नाशमान देखे जाते हैं, अतएव अपनी उत्पत्तिके कारणों द्वारा उत्पन्न वस्तुको
१. कश्चिद् वणिक् द्रव्यमदित्सुः पत्रद्वारा प्रत्यहमुत्तमय श्वस्तनदिनं दास्य इति बोधयति तद्वत् ।