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प्रमाणनयतत्त्ववालोक
बौद्ध ज्यारे प्रमाण चर्चा उपर भार माप्यो त्यारे भारतीय बघां दर्शनोए पोतपतानी प्रमाणविद्यानुं पुनर्निरीक्षण अने पुनर्व्यवस्थापन क्युं. आ बधुं चाल्तु हतुं त्यारे जैन दार्शनिकोए पण आगमकाळथी चाली आवती ज्ञानचर्चाने प्रमाणचर्चामां परिवर्तित करी दोषी अने तेना परिपाकरूपे वि०नी आठमी शतीथी जैन प्रमाणविद्यानो युग शरू थाय छे. ते युगनी रचना 'प्रमाणनयतत्वालोक' छे तेथी तेमां प्रमाणकेन्द्रित जैनदर्शननी चर्चा छे.
प्रमाणनयतत्त्वा लोकनी स्याद्वादरत्नाकर टीका ए खरेवर दर्शनप्रमेयोनो रत्नाकर ज छे. पण ए एटली बधी विस्तृत छे के प्रारंभिक विद्यार्थीओ माटे ते उपयोगी थई शके तेवी नथी. तेनो संक्षेप 'रत्नाकरा वतारिकावृत्ति' मां आचार्य रत्नप्रभे कर्यो छे पण ते पण भाषा अने विचार चर्चानी क्लिष्टताने कारणे सुगम नथी. आथी व्यतिसंक्षिप्त टीकानो आवश्यकता हती व जेनी पूर्ति प्रस्तुत पुस्तकमां मुद्रित बालबोधिनी द्वारा करवामां आवी छे. आनुं पुनर्मुद्रण थाय छे ते ज तेनी उपयोगितानुं प्रमाण छे.
ला० द० भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, नवरंगपुरा
अमदावाद. ९
ता. ३.१.१९७०
दलसुख मालवणिया