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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी ७९ क्या किया जाए...? विचारों में समता की अविचल स्थापना कैसे की जाए? खूब चिन्तन-मनन करने पर एक उपाय मिल गया...! वह उपाय है विश्वास का! परमात्मा के प्रति दृढ विश्वास स्थापित हो जाए... श्वास में विश्वास घुल-मिल जाए तो विचारों में समता स्थिर बन सकती है। __केवल शाब्दिक विश्वास नहीं, श्वासों के साथ विश्वास घुल-मिल जाना चाहिए। 'जो कुछ हो रहा है, मेरे परमात्मा ने जाना हुआ है, देखा हुआ है। फिर मुझे किस बात की चिंता? किस बात का भय?' चिन्ता और भय ही तो विचारों में विषमता पैदा करते हैं। मुझे चिन्तामुक्तभयमुक्त बन जाना चाहिए | परमात्मविश्वास ही मुझे चिन्तामुक्त-भयमुक्त कर सकता है। चिन्ता चली गई, भय चला गया कि मन में समता आ गई। परमात्मा के अचिंत्य प्रभाव से चिन्ताओं का और भय का समूल उच्छेद हो जाए, तो मन समता से प्रशान्त हो जाए। महासती मनोरमा ने अपने मन में ऐसी समता प्रस्थापित की थी। श्रेष्ठि सुदर्शन पर कलंक आया और सूली पर चढ़ने की सजा हो गई... तो भी मनोरमा भयभीत नहीं हुई... वह परमात्मध्यान में लीन बन गई। सुदर्शन और मनोरमा के विचारों में उग्रता नहीं आयी, विषमता पैदा नहीं हुई। उनके जीवन-व्यवहार में अस्थिरता नहीं आयी। किसी के भी प्रति दुर्व्यवहार नहीं किया। जिस रानी अभया ने सुदर्शन को कलंकित किया था, उस रानी के प्रति भी रोष नहीं किया, दुर्व्यवहार नहीं किया। ऐसी आत्मदशा कब प्राप्त होगी? कैसे प्राप्त होगी? परमात्मकृपा ही एक उपाय है। परमात्मविश्वास ही एक सहारा है। मेरे हर श्वासोच्छवास में विश्वास घुल-मिल जाय तो बस! विचारों में समता बनी रहेगी और आचार में स्थिरता बनी रहेगी... इससे जीवनयात्रा आनंदपूर्ण बन जायेगी। For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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