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यही है जिंदगी
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व ३९. आनंद की अनुभूति का राजमार्ग ३
विचारों में समता और आचारों में स्थिरता आए बिना आनंद की अनुभूति असंभव है। विचारों में उग्रता भरी हुई है और आचार में अस्थिरता आ गई है, तो अशांति और अस्वस्थता ही भुगतनी पड़ेगी। ___ जब विचारों में क्रोध और लोभ प्रविष्ट हो जाते हैं, मान और माया का प्रवेश हो जाता है, तब विचार चंचल बन जाते हैं। आवेश, उग्रता... दीनता... हीनता और क्षुद्रता विचारों की समता को नष्ट कर देते हैं। ___ जब विचारों में समता नहीं रहती है तब आचार-व्यवहार भी अस्थिर बन जाता है। कर्तव्यपालन में अस्थिरता आ जाती है। कभी कर्तव्यपालन होता है, कभी नहीं।
विचारों की समता बनाये रखने के लिए क्षमा, नम्रता, सरलता और निर्लोभता का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए। हमारे विचार सदैव क्षमाशील बने रहने चाहिए। हमारे विचारों में सदैव नम्रता का आस्वाद मिलना चाहिए। सदैव हमारे विचारों पर सरलता का साम्राज्य छाया रहना चाहिए। सदैव हमारे विचार लोभ से मुक्त रहने चाहिए। __समरादित्य केवली का चरित्र सामने आता है... तब गुणसेन के विचारों की समता आकृष्ट किये बिना नहीं रहती। अग्निशर्मा के प्रति गुणसेन ने कभी भी अपने विचारों को उग्र नहीं बनने दिये। केवल एक जीवन में नहीं, नौ-नौ जन्मों में गुणसेन ने विचारों में समता ही रखी... तो नौवें भव में वे समरादित्य बने और वीतरागता प्राप्त कर ली। वैराग्य के साथ-साथ समता की उन्होंने अखंड उपासना की। ___ अग्निशर्मा ने घोर तपश्चर्या की थी, परंतु विचारों में समता नहीं रख पाया। गुणसेन के प्रति उसके विचार उग्र बन गये... उग्र बनते ही गये... गुणसेन का घातक बन गया और भीषण संसार में भटक गया। नौ भवों में गुणसेन और अग्निशर्मा के अति निकट के संबंध भी रहे... परंतु ये संबंध प्रेम के संबंध नहीं रह सके। पिता-पुत्र के और पति-पत्नी के भी संबंध हुए थे, परंतु उन संबंधों में स्नेह और सद्भाव नहीं थे। अग्निशर्मा की आत्मा उन भवों में उचित कर्तव्यपालन भी नहीं कर पायी थी। कैसे कर सकती थी? यदि विचारों में समता न हो तो जीवन-व्यवहार में स्थिरता भी नहीं रहती है!
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