SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी २३९ व १०८. अहंकार अप्रस्तुत है : - नदी में पानी की बाढ़ थी। नदी पर पुल था, परन्तु पुराना था। एक गिलहरी पुल के पास खड़ी थी। उसको नदी पार करनी थी, परन्तु पुराने जीर्ण पुल पर से गुजरने में वह घबरा रही थी। इतने में वहाँ एक हाथी आया । गिलहरी ने हाथी को पूछा : 'बड़े भैया, आप कहाँ जा रहे हो?' हाथी ने कहा : 'नदी के उस पार ।' 'क्या आपके साथ मुझे भी ले चलोगे?' गिलहरी गिड़गिड़ायी। 'चल, बैठ जा मेरे ऊपर |' गिलहरी हाथी पर बैठ गयी। हाथी के वजन से लोहे का वह जीर्ण पुल काँपने लगा। हाथी धीरे-धीरे चलता है, फिर भी पुल हिलता है। हाथी सामने किनारे पहुँच गया। गिलहरी नीचे उतर कर नाचने लगी। हाथी ने पूछा : 'क्यों नाचती है?' 'आज हमने गजब का काम किया!' 'क्या?' 'हम दोनों ने मिलकर इस बूढ़े पुल को हिला दिया...!' - गिलहरी की यह भाषा थी अहंकार की, मिथ्या अहंकार की। - अहंकार दो प्रकार के होते हैं। - हाथी अहंकार करता, तो वह सही अहंकार कहलाता! - गिलहरी का अहंकार मिथ्या अहंकार था। हालाँकि, अहंकार केवल मिथ्या है, फिर भी एक मनुष्य सही रूप में एक महान कार्य करता है और 'अहंकार' करता है : 'मैंने यह कार्य किया है, मैं ही ऐसा कार्य कर सकता हूँ, दूसरा कोई यह कार्य नहीं कर सकता।' - ठीक है, मुश्किल कार्य किया है और गर्व धारण करता है। दुनिया सुन लेती है और धन्यवाद भी देती है। - परन्तु महान कार्य करनेवालों के साथ रहनेवाले, साथ चलनेवाले (कार्य कुछ नहीं करते!) जब गर्व करते हैं तब वे प्रशंसापात्र नहीं बनते, श्रद्धेय नहीं बनते। - भगवान महावीर स्वामी के साधनाकाल में, स्वयं शिष्य बना हुआ For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy