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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - www.kobatirth.org यही है जिंदगी २४० गोशालक, भगवान के साथ-साथ चलता था और भगवान के दिव्य प्रभावों को अपने प्रभाव बताता था । दुनिया ने उसकी हँसी की थी। लोगों ने उसकी पिटाई भी की थी। बार- बार भगवान ने उसको बचाया था । पिता के महान कार्यों पर, निष्क्रिय और प्रमादी पुत्र गर्व करता है । कहता फिरता है : 'हमने ये ये बड़े कार्य किये हैं!' जबकि उसने बड़ा सत्कार्य करना तो दूर, छोटा सत्कार्य भी नहीं किया होता है ! - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - जो कार्य मनुष्य ने नहीं किया है, वह कार्य अपना बताना बहुत बड़ा दोष है। दूसरों के कार्यों को, शुभ कार्यों को अपने कार्य बताकर प्रशंसा पाने का प्रयत्न कितना बचकाना प्रयत्न है ! दूसरों के बड़े कार्यों में अपना साथ - सहयोग आटे में नमक जितना न होने पर भी, यह बताने का प्रयत्न करना कि 'इस कार्य में मेरा भरपूर सहयोग रहा है... अथवा मेरी वजह से ही यह कार्य संपन्न हो सका है,' मिथ्या आत्मसंतोष पाने की कितनी अधम मनोवृत्ति है ? एक मुनिराज मेरे पास बैठे थे। एक भद्र पुरुष ने आकर उनका अभिवादन किया और वह बोला : 'आपने बहुत बड़ी तपश्चर्या की ! एक महीने के उपवास किये आपने... धन्य है आपको!' उन मुनिराज ने मेरे सामने देखा... और वे मुस्कुराये। मैंने पूछा : 'आपने कब महीने के उपवास किये ?' वह प्रशंसा करनेवाला पुरुष चला गया था । मुनिराज ने कहा : 'मैंने तो महीने के उपवास तो क्या, चार दिन के उपवास भी कभी नहीं किये!' मैंने कहा : 'तो फिर आपने उस भाई को ऐसा क्यों नहीं कहा कि 'महीने के उपवास मैंने नहीं किये हैं।' आपने तो मजे से सुन लिया... प्रशंसा सुन ली ! ' उन्होंने तो कोई जवाब नहीं दिया, परंतु मैंने अपने भीतर को टटोला | क्या मेरे मन में तो ऐसी मिथ्या प्रशंसा सुनने की वृत्ति नहीं पड़ी है न? झूठा यश पाने की मलीन वृत्ति नहीं पड़ी है न? कभी मुझसे कोई मिथ्या अहंकार तो नहीं हो जाता है न? - - उस गिलहरी का किस्सा पढ़कर... अपने भीतर में मैंने गहराई में जाकर टटोला...। ऐसे कुछ विचार - बीज पड़े थे भीतर में! देखकर चकित रह गया । • खोद-खोद कर उन विचार - बीजों को बाहर निकाले और जमीन में गाड़ दिये... ज्ञानाग्नि में जलाकर ! ताकि वे बीज वापस कभी उगे ही नहीं । For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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