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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी २३८ प्रतिदिन 'कोऽहं?' - 'मैं कौन हूँ?' का चिंतन करने की ज्ञानी पुरुषों ने प्रेरणा दी है। जिससे 'आत्मा' स्मृति में बनी रहे। - मैं शरीर नहीं हूँ, मैं इन्द्रिय नहीं हूँ, - मैं मन भी नहीं हूँ, मैं आत्मा हूँ! नयी जिज्ञासा पैदा होती है : 'मैं आत्मा हूँ, कैसी हूँ?' - इस जिज्ञासा को भी पूर्णज्ञानी महापुरुषों ने तृप्त किया है। मैं ज्ञानमय हूँ, मैं दर्शनमय हूँ, मैं चारित्रमय हूँ।' - 'अभी मैं कर्मों से मलीन हूँ। कर्मजन्य राग-द्वेष के भावों से मलीन हूँ।' - मुझे अपनी मलीनता दूर करनी चाहिए । - मैं जैसे शरीर की मलीनता दूर करता हूँ, वस्त्रों की मलीनता दूर करता हूँ, मकान की मलीनता दूर करता हूँ... वैसे मुझे अपनी मलीनता भी दूर करनी चाहिए। - यह मनुष्य-जीवन मेरी मलीनता दूर करने के लिए मिला है। आत्मा को पूर्णरूपेण विशुद्ध, मनुष्यजीवन में ही किया जा सकता है। ___- जो मैं नहीं हूँ, जो अपना नहीं है, उसकी मलीनता दूर करने में जीवन का श्रेष्ठ समय मुझे बरबाद नहीं करना चाहिए। मुझे स्वयं शुद्ध होने का पुरुषार्थ करना है। - आत्मशुद्धि का पुरुषार्थ ही धर्मपुरुषार्थ है। - जो आत्मा को शुद्ध करे, वही धर्म । - वह धर्म है सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र। - ज्यों-ज्यों आत्मा शुद्ध होती जायेगी त्यों-त्यों - ० विचार पवित्र, प्रशांत और परार्थमय बनेंगे। 0 वाणी हितकारी, प्रिय और सत्य बनेगी। 0 इन्द्रियाँ शान्त, सन्मार्गगामी और संयमित बनेगी। O आत्मज्ञान में, शास्त्रज्ञान में निमग्नता आएगी। 0 परमात्मस्वरूप से निकटता प्राप्त होगी। हे परमात्मन्, मैं (आत्मा) कब ऐसी विशुद्धि प्राप्त करूँगा? इस जीवन में बस, इतना उपकार कर दो... मैं विशुद्ध बन जाऊँ! For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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