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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी ११८ ५९. भक्ति की शक्ति परमात्मभक्ति का महोत्सव था। सुन्दर मंडप बनाया गया था। रजत के सिंहासन पर वीतराग परमात्मा की नयनरम्य मूर्ति स्थापित की गई थी। घी के दीपक जल रहे थे और सुगंधित धूप की सुगंध फैल रही थी। संगीतकारों की मंडली प्रभुभक्ति के गीत गा रही थी। अनेक स्त्री-पुरुष शांति से गीत सुन रहे थे। वातावरण में भक्ति की सुगंध थी। वहाँ श्रद्धा थी, विश्वास था। ___ मैं भी वहाँ उपस्थित था । मेरा मन परमात्मा की 'अनंत शक्ति' के विषय में सोच रहा था । 'अंतराय कर्म' के क्षय से आत्मा में अनंत शक्ति का आविर्भाव होता है, ऐसा धर्मग्रन्थों में मैंने पढ़ा है। मेरे मन में प्रश्न था - 'परमात्मा की अनंत शक्ति का उपयोग क्या? शारीरिक शक्ति का उपयोग, अर्थशक्ति का उपयोग, अणुशक्ति का उपयोग... और दूसरी अनेक शक्तियों का उपयोग तो मेरे ख्याल में है, यानी मैं उन शक्तियों का उपयोग तो जानता हूँ, परन्तु आत्मशक्ति का उपयोग क्या? परमात्मा की अनंत शक्ति का उपयोग क्या? दुनिया में अनंत दुःख हैं, अनंत वेदनाएँ हैं, क्यों परमात्मा की अनंत शक्ति इन अनंत दुःखों को नहीं मिटाती? क्या वह शक्ति दुःखनाश नहीं कर सकती है? दुनिया में अनंत पाप हैं! अनंत दोष हैं... क्या परमात्मा की अनंत शक्ति इन अनंत पापों का नाश नहीं कर सकती? पापनाश करने की क्षमता क्या परमात्म-शक्ति में नहीं है? दुःखनाश करने की और पापनाश करने की शक्ति होनी चाहिए परमात्मा में, क्योंकि एक सूत्र में परमात्मा से माँगा गया है : दुक्ख-खओ कम्म-खओ, समाहिमरणं च बोहिलाभो अ। संपज्जउ मह एअं तुह नाह! पणाम करणेणं...।। 'हे नाथ! तुझे प्रणाम करने से मुझे दुःखक्षय, कर्मक्षय, समाधि-मृत्यु और बोधिलाभ की संप्राप्ति हो!' यदि दुःखनाश करने की, कर्मनाश करने की, समाधि-मृत्यु देने की और बोधिलाभ देने की परमात्मा में शक्ति नहीं होती, तो यह सब माँगने की बात महर्षि नहीं करते! For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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