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उज्जयिनी की राजकुमारी
'यह जिसका चित्र है, क्या तुमने उस व्यक्ति को आँखों से देखा है? ऐसा अछूता सौन्दर्य क्या इस धरती पर है?' कामगजेन्द्र ने चित्रकार को तीक्ष्ण निगाहों से देखते हुए कहा। __'जी राजकुमार, मैंने यह सौन्दर्य अपनी आँखों से देखा है, जैसा देखा है वैसा ही चित्रित किया है। हो सकता है, मेरी तुलिका ने इस सौन्दर्य का स्वस्थ आलेखन न भी किया हों, क्योंकि आखिर नकल तो नकल ही होगी।'
'कहाँ देखा? यह किसका चित्र है?' चित्र पर आँखें गड़ाये कामगजेन्द्र की आवाज में कोमल विह्यलता आ बसी ।
'उज्जयिनी के सम्राट अंवति की राजकुमारी का यह चित्र है। मैंने राजकुमारी को देखा और वहीं पर उसका चित्र बिना किसी अतिशयोक्ति के बनाया।'
कामगजेन्द्र को चित्रकार की बातों पर सहज विश्वास हो गया। वह अपलक नेत्रों से चित्र को देखता रहा। उसकी आँखें हटती ही नहीं वहाँ से । सौन्दर्य और लावण्य से भरेपूरे उस चित्र ने कामगजेन्द्र को अवश बना दिया। चित्र को अपने पास रखकर, चित्रकार को अतिथिगृह में स्नान-भोजनादि से निवृत होने के लिए भेज दिया। चित्र को लेकर कामगजेन्द्र अपने आवास में आता है | पलंग पर बैठकर उस चित्र के सौन्दर्यपाश में वह अपने आपको बाँध लेता है। उसकी निगाहें टकटकी बाँधे चित्र पर जमी है। उसे ख्याल ही नहीं आता कि प्रियंगुमति बिल्कुल करीब आकर खड़ी हो गयी है। कामगजेन्द्र की तल्लीनता देखकर उसके होठों पर हँसी के गुलाब बिखर पड़े | वह पूछ बैठी : ___ 'नाथ! क्या मैं यह चित्र देख सकती हूँ?' कामगजेन्द्र एक दम सकपका जाता है। वह चित्र को अपने हाथों में छिपाने की कोशिश करता हुआ प्रियंगुमति की ओर देखता है। उसकी आँखों में सन्देह के डोरे खींच आते हैं, पर प्रियंगुमति कामगजेन्द्र के हाथों से चित्र लेकर देखती है और पलंग पर बैठकर बड़े प्यार से पूछती है : 'यह किसका चित्र है?' 'उज्जयिनी की राजकुमारी का ।' 'कितना प्यारा चेहरा है, नहीं?' 'राजकुमारी स्वयं ऐसी ही है, जैसा चित्र है!' 'कितना भोलापन और मासूमियत तैर रही है चेहरे पर ।'
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