________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आखिर, जो होना था!
८७
TA
A
rthi.
.S. NEstim e
1ERE
H
[१४. आखिर, जो होना था!
wity
MPETER
-
*-*
F
erna
maAMEKAXEurristi Hfro
"" ... ...
जब दूर से यक्षद्वीप दिखायी देने लगा, तब नाविक ने यह कहकर अमरकुमार का ध्यान आकर्षित किया - 'कुमार सेठ, अब एकाध घटिका में हम यक्षद्वीप पहुँच जाएँगे! देखिए... वे ऊँचे-ऊँचे वृक्ष जो दिखाई देते हैं वे यक्षद्वीप के ही हैं!' उसने यक्षद्वीप की दिशा में ऊँगली दिखाकर कहा। 'देखो, पहले तुम लोग मीठे पानी भर लेना। खाना बाद में बनाना।' 'आपकी आज्ञा अनुसार ही होगा, कुमार सेठ! नाविक ने विनय से कहा!
अमरकुमार सुरसुंदरी के पास पहुँचा | यक्षद्वीप की तरफ उसका ध्यान खींचते हुए कहाः 'सुंदरी, वहाँ पहुँचकर तुरंत घूमने के लिए चलेंगे!' 'आपके लिए भोजन...?' 'आज का भोजन ये लोग बना लेंगे... तुझे नहीं बनाना है।'
यक्षद्वीप की ओर जहाज तेजी से आगे बढ़ रहे थे। नाविक जहाजों को किनारे पर लंगर डालकर खड़े करने की तैयारी करने लगे | बारह ही जहाजों पर के लोग हँसते, शोर मचाते काम कर रहे थे। __समुद्र में उचित स्थान पर लंगर डालकर जहाजों को रोक दिया गया। जहाजों से बँधी हुई नौकाओं को तैयार किया गया। सबसे पहले अमरकुमार एवं सुरसुंदरी नौका में उतरे। नाविक ने नौका को द्वीप के किनारे की ओर चला दिया। __ किनारा आते ही अमरकुमार कूद गया। सुरसुंदरी को हाथ का सहारा देकर उतारा । नाविक ने नौका जहाज की ओर लौटा ली।
अमरकुमार व सुरसुंदरी द्वीप के मध्यभाग की तरफ चल दिये। द्वीप हरियाली से भरा हुआ था। कई तरह के वृक्ष महक रहे थे। जगह-जगह पर खुशबू से छलकते फूलों के पौधे बिछे थे। पानी के सुंदर झरने थे।
काफी घूमे | सुरसुंदरी बेहद थक गयी। एक पेड़ के नीचे दोनों विश्राम लेने के लिए बैठे।
For Private And Personal Use Only