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आखिर, जो होना था! 'क्या पता...? मार भी डाले... यदि क्रूर हो तो।' 'ऐसा हो तो रात नहीं रूकेंगे वहाँ पर ।' 'रात को वहाँ रूकने की तो ज़रूरत ही नहीं है। हमको वहाँ उस द्वीप पर पर घूमने-फिरने के लिए एक प्रहर समय भी मिल जाएगा! द्वीप वैसे भी काफी रमणीय है। हम दोनों चलेंगे घूमने। लौटकर भोजन कर लेंगे और फिर जहाजों को आगे बढा देंगे।
'ठीक है, वहाँ पर भोजन दूसरे आदमी बनाए... पर यहाँ तो मेरे हाथों का खाना ही खिलाऊँगी बराबर न?' हँसी में लिपटी सुरसुंदरी खड़ी हुई और रसोईघर की ओर चल दी तैयारी करने के लिए |
अमरकुमार मंत्रणाकक्ष में गया । मुनिमों को वहीं पर बुलवा लिया और उनके व्यापार वगैरह के बारे में वह विचार-विमर्श करने लगा।
अनुभवी मुनीमों ने सिंहलद्वीप के व्यापारियों की रीति-रस्म बतायी... भयस्थान भी बतलाए। उस द्वीप की राजनीति समझायी। व्यापारिक नीतिरीति की जानकारी करायी। अमरकुमार एकाग्र मन से सुनता रहा सारी बाते। पिताजी के समय के मुनीमों पर अमर का भरोसा था, श्रद्धा थी।
जहाज आगे बढ़ रहे थे उस यक्ष-द्वीप की ओर, जहाँ सुंदरी के जीवन में एक अनसोचा हादसा होना था। सोची बातें बनने-बिगड़ने से ज्यादा असर नहीं होता! जब अनचाहा बनता-बिगड़ता है, तो पूरी जिंदगी में ठहराव सा आ जाता है।
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