________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
८५
संबंध जन्म जन्म का 'सच हो सकती हैं! नाविक का अनुभव होगा, तब ही वह कह रहा होगा न!' 'नहीं! अनुभव होता तो वह ज़िंदा कैसे रहता?' 'उसने जाना होगा कि यह यक्ष मानव भक्षी है।' 'उस यक्ष को क्या और कुछ खाने को नहीं मिलता होगा कि वह मनुष्य को खा जाता है।' 'वह खाता नहीं होगा... मार डालता होगा।' 'पर क्यों?' 'उसे शायद मानव जाति पर द्वेष होगा?' 'कुछ कारण भी तो होना चाहिए?' 'कारण पूर्वजन्म का भी तो हो सकता है न! गत जन्म में मनुष्यों ने उसको खूब दुःख दिया होगा... मारा होगा... तिरस्कृत किया होगा... इससे उसके मन में मनुष्य जाति से नफ़रत हो गयी होगी। मरकर वह यक्ष हुआ होगा... अपने विभगज्ञान से पूर्व जन्म देखा होगा... वैर की आग धधक उठी होगी, बदला लेने के लिए तड़प रहा होगा!'
यह बात तुम्हारी बँचती है। चूंकि धर्मशास्त्रों में ऐसी बातें पढने को मिलती है! मैंने पढी भी है।
'और फिर इस द्वीप पर उसका अधिकार होगा। उसकी इजाजत के बगैर, जो कोई द्वीप पर आने की कोशिश करता होगा, उसे वह मार डालता होगा।'
अमरकुमार ने यक्ष के द्वारा की जानेवाली मानव-हत्या का दूसरा संभाव्य कारण बतलाया।
‘पर उसकी इजाजत लेने जाए कौन? किस तरह जाए? कहाँ जाए! क्या वह जिंदा जागता प्रत्यक्ष रहता होगा? देव तो मनुष्य आँखों से ओझल रहते हैं ना?'
'नहीं... देखे भी जा सकते हैं... और नहीं भी दिखे! फिर भी उसकी अनुज्ञा ली जा सकती है। अनजान जगह पर रहना हो, तो 'इस भूमि पर जिस देव का अधिकार हो वे देव मुझे अनुज्ञा दें! मुझे इस जगह पर रहना है।' इतना बोले तो अनुज्ञा मिल गयी। वैसा मान ले।'
'तब तो फिर हम भी इस तरह अनुज्ञा लेकर ही उन द्वीप पर उतरेंगे। फिर तो यक्ष हमको नहीं मारेगा न?'
For Private And Personal Use Only