________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
८४
संबंध जन्म जन्म का
'यक्ष का!' 'क्या कहा? यक्ष से भय? क्यों?'
वह यक्ष मानव भक्षी है। जैसे ही यक्ष को आदमी की गंध आती है... वह आदमखोर उस आदमी को खतम किये बगैर नहीं छोड़ता! इधर से गुजरने वाले यात्री इस द्वीप से किनारा करके गुजरते हैं, यहाँ पर रात में तो कोई रहता ही नहीं! रात में रूकना यानी जान-बूझकर यक्ष का शिकार होना!' ।
'तो फिर हम क्या करेंगे? अच्छा, ऐसा करे तो? हम वहाँ कुछ देर दिन में ठहरे... पानी वगैरह लेकर जल्द ही आगे चल दें। रात क्या, साँझ ढलने से पहले ही वहाँ से चल देंगे। फिर खतरा किस बात का? हाँ, द्वीप पर घूमना नहीं होगा।'
"वैसे तो जब तक भोजन वगैरह तैयार हो तब तक आप द्वीप पर घूम आना! एकाध प्रहर का समय तो मिलेगा ही!' 'यह बात ठीक है तुम्हारी!' ‘पर कुमार सेठ, फिर भी हम को होशियार तो रहना ही होगा!, सावधानी तो पूरी रखनी होगी! यक्ष तो जब चाहे, तब आ सकता है न?'
'विदेश में हमेशा सावधान ही रहना चाहिए, भाई! जो जागत है सो पावत है... सोवत है सो खोवत है!' ___ अमरकुमार ने समुद्र की सतह पर तैरते अपने बारह जहाजों पर निगाह डाली और वह व्यापार के विचारों में डूब गया! तब परिचारिका ने आकर कहा : 'दुग्धपान का समय हो चुका है... देवी आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं।'
तब वह विचारनिद्रा में से जगा । जल्दी से भोजन कक्ष में पहुँचा । सुरसुंदरी उसकी राह देखती बैठी थी।
'स्वामिन्, कोई व्यापारी आ गया था क्या?' सुंदरी ने हँसते हुए पूछा! 'व्यापारी लोग आयेंगे तो मुझे दूध वहीं पर मँगवा लेना होगा।' 'मैं खुद लेकर हाजिर होऊँगी आपकी सेवा में।'
अमरकुमार हँस पड़ा। दोनों ने दुग्धपान किया। दुग्धपान करते-करते अमरकुमार ने यक्षद्वीप की बात सुंदरी से कही। 'तो क्या यह बात सच होगी?' सुंदरी ने पूछा।
For Private And Personal Use Only