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माँ का दिल
सुरसुंदरी के साथ अमरकुमार ने नौका में पदार्पण किया। लागों ने जयध्वनि की। नौका बड़े जहाज की ओर सरकने लगी। और कुछ ही पल में जहाज के निकट पहुँच गयी। दंपति जहाज में आरूढ हुए... और जहाज चला। 'आइएगा... जल्द वापस लौटिएगा...'
'खुश रहना... सकुशल रहना...' की आवाजें धीरे-धीरे सुनायी देनी बंद होने लगी। किनारे पर खड़े हजारों स्त्री-पुरूष हवा में हाथ हिलाते रहे। तब तक वह खड़े रहे, जब तक जहाज दिखायी देते रहे...।।
सुरसुंदरी एवं अमरकुमार भी चंपा को देखते रहे... जब तक उन्हें चंपा की प्राचीर दिखायी देती रही। सब कुछ धुंधलके में आविरत होता गया... एक गहरा धुंधलका अमरकुमार-सुरसुंदरी को निगलने के लिए तैयार होकर धीरेधीरे उनकी ओर बढ़ रहा था।
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