________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कितनी खुशी, कितना हर्ष!
५३
.
..म्स
x tra Mastestice
SHARE
९. कितनी खुशी! कितना हर्ष!unty
ज़ब इन्सान की कोई इंद्रधनुषी मधुर कल्पना साकार हो उठती है, तब वह खुशी से झूम उठता है। आनंद के पंख लगाये वह उड़ने लगता है, कल्पनाओं के अनंत आकाश में | यह धरती उसे स्वर्ग से ज्यादा खूबसूरत नज़र आती है।
रानी रतिसुंदरी ने जब पुत्री को बधाई दी कि 'अमरकुमार के साथ तेरा विवाह तय हो गया है', तब पल-दो-पल तो सुरसुंदरी अविश्वास से माँ की
और निहारती रही... उसे लगा... 'शायद माँ मेरे मन की बात जानकर मेरा उपहास कर रही है।' पर जब रतिसुंदरी ने उसे विश्वास दिलाया, तब मानो सुरसुंदरी को विश्व का श्रेष्ठ सुख मिल गया। पर उसने अपनी खुशी माँ के समक्ष प्रकट न होने दी। ऐसी खुशी के फूल तो सहेलियों के बीच बिखरने के होते हैं न?
प्रिय के मिलन की कल्पना तो ज़ैसे अफ़ीम के नशे-सी है...। दिल का दरिया उफन-उफनकर बरसों से जिस पर छलक रहा हो... हृदय के उस देव का सान्निध्य... साहचर्य प्राप्त होने की शहनाई जब मन के आँगन में गूंजने लगती है, तब मोह का नशा चढ़ेगा ही।
सुरसुंदरी को लगा-वह जमीन पर खड़ी नहीं रह सकेगी। वह दौड़ गयी अपने शयनकक्ष में | दरवाज़ा बंद किया और पलंग पर लोटने-पोटने लगी। 'अमर... अमर...' उसका मन पुकार उठा... उसका दिल पागल हो उठा।
न सोचा हुआ सुख उसके दरवाज़े पर दस्तक दे रहा था। अकल्प्य शुभ कर्मों ने उस पर मुहर लगा दी। वह अमर के साथ भावी सहजीवन की कल्पनाओं में डूब गयी।
उसका श्रद्धा से भरा दिल बोल उठा : 'सुंदरी तेरी परमात्म भक्ति का यह तो पहला पारितोषिक है। अभी तो तुझे इससे भी बढ़-चढ़कर सुख मिलनेवाले हैं।'
उसका आश्वस्त मन बतियाने लगा : 'सुंदरी, पुण्यकर्म का उदय जब होता है तब सुख के सागर में ज्वार आता है, पर वह उदय शाश्वत नहीं होता... क्षणिक होता है।'
वह पलंग पर से नीचे उतरी, उसने वस्त्र परिवर्तन किया । द्वार खोलकर
For Private And Personal Use Only