________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कितनी खुशी, कितना हर्ष!
____५२ महाराजा सेठ के पास आये | 'सेठ! महारानी यह समाचार सुनकर अत्यन्त आनन्दित हो उठी है।' 'महाराजा, तो फिर अब शादी में विलंब नहीं करनी चाहिए।' 'सही बात है... राजपुरोहित को बुलाकर शादी का मुहूर्त निकलवा दें।' 'जी हाँ, 'शुभस्य शीघ्रम्!' शुभ कार्य में विलंब नहीं करना चाहिए...।' 'तो कल आप इसी समय यहाँ पधार जाना, मैं राजपुरोहित को बुलवा लूंगा।'
'जैसी आपकी आज्ञा! अब मैं इज़ाज़त चाहूँगा...| घर पर जाकर अमर की माता को यह समाचार दूंगा, तब वह उत्यंत हर्ष विभोर हो उठेगी।।
'हाँ, आप घर जाइए पर रथ में ही जाना... रथ बाहर ही खड़ा है... अब तो आप हमारे समधी हो गये!' ___ महाराजा ने हँसते-हँसते दरवाज़े तक जाकर सेठ को बिदा किया। सेठ रथ में बैठकर घर की ओर चले गये।
'कितने सरल विनम्र और विवेकी सेठ हैं।' राजा मन-ही-मन बोले और जाते हुए रथ को देखते रहे। रथ के ओझल होते ही महाराजा महल में आये। वे रतिसुंदरी के कक्ष में पहुँचे। वहाँ रतिसुंदरी एवं सुरसुंदरी दोनों बातें कर रही थी। सुरसुंदरी माँ के गले में बाँहे डालकर माँ से लिपटी हुई कुछ बोल रही थी... रतिसुंदरी उसकी पीठ पर हाथ फेरती हुई मुस्करा रही थी। राजा के आते ही दोनों खड़ी हो गयी।
'क्यों बेटी... अपनी माँ को ही प्यार करोगी... हमें नहीं?' 'ओह... बापू...' और सुरसुंदरी महाराजा के कदमों में झुक गयी।
राजा ने उसको उठाकर अपने पास बिठाते हुए कहा... 'सेठ को महल के दरवाज़े तक पहुँचाकर आया।' 'समधी का आदर तो करना ही चाहिए न!' रतिसुंदरी ने कहा।
'हमें' एक उत्तम और सच्चा स्नेही स्वजन परिवार मिला, देवी। धनावह श्रेष्ठी वास्तव में उत्तम पुरुष हैं।' 'और अमरकुमार?' रतिसुंदरी सुरसुंदरी के सामने देखकर हँस दी!' सुरसुंदरी मुँह में दाँतों के बीच आंचल का छोर दबाये हुए वहाँ से भाग गयी। राजा-रानी दोनों मुक्त मन से खिलखिला उठे।
For Private And Personal Use Only